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याख्याप्रज्ञतिः ॥६१६॥
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८ शतके उद्देशः२ ॥६१६॥
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नाणी ते अत्थेगतिया दुन्नाणी अत्थेगतिया तिन्नाणी अत्थेगतिया चउनाणी अत्थेगतिया एगनाणी, जे दुनाणी ते आभिणियोहियनाणी य सुयनाणी य, जे तिन्नाणी ते आभिणियोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी अहवा आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी मणपजवनाणी, जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी, ओहिनाणी मणपजवनाणी, जे एगनाणी ते नियमा केवलनाणी, जे अन्नाणी ते अत्थेगतिया दुअन्नाणी अत्थेगतिया तिअन्नाणी, जे दुअन्नाणी ते मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य, जे तियअन्नाणी ते मइअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी।।
[प्र०] हे भगवन् ! विभंगज्ञान केटला प्रकारनु का छे ? [उ०] विभंगज्ञान अनेक प्रकारचें काहे, ते आ प्रमाणे-ग्रामने आकारे, वर्ष (भारतादिक्षेत्र) ने आकारे, वर्षधपर्वतने आकारे, पर्वतने आकारे, वक्षना आकारे, स्तूपना आकारे, घोडाना आकारे, हाथीना आकारे, मनुष्यना आकारे, किंनरना आकारे, किंपुरुषना आकारे, महोरगना आकारे, गंधर्वना आकारे, वृषभना आकारे, पशु, पसय, पक्षी अने वानरना आकारे-५ प्रमाणे अनेक आकारे विभंगज्ञान कहेलुं छे. [प्र०] हे भगवन् ! शुं जीवो ज्ञानी ले के
अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! जीवो ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे. जे जीवो ज्ञानी छे तेमां केटलाएक चे ज्ञानवाळा, केट| लाएक त्रण ज्ञानवाळा, केटलाक चार ज्ञानवाला अने केटलाक एक ज्ञानवाळा छे, जे वे ज्ञानवाला छे ते मतिज्ञान अने श्रुतज्ञानत वाळा जे व्रण ज्ञानवाळा छे ते मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अने अवधिज्ञानवाला छे, अथवा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने मनःपर्यवज्ञानवाला छे,
जे चारज्ञानवाला छे ते मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्यवज्ञानवाळा छे. जे एक ज्ञानवाळा छे ते अवश्य एक केवळज्ञा
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