Book Title: Bhagvati Sutram Part 03
Author(s): Sudharmaswami,
Publisher: Hiralal Hansraj
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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः
॥६५२॥
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मन अने यचनथी करावतो मथी, ३६ अथवा मन अने कायथी करावतो नथी, ३७ अथवा वचन अने कायर्थी करावतो नथी, ३८ अथवा मन अने वचनथी करनारने अनुमति आपतो नथी, ३९ अथवा मन अने कायथी करनारने अनुमति आपतो नथी, ४० अथवा वचन अने कायथी करनारने अनुमति आपतो नथी; ४१ एकविध एकविधे प्रतिक्रमतो मनथी करतो नथी, ४२ अथवा वचनथी करतो नथी, ४३ अथवा कायथी करतो नथी; ४४ अथवा मनथी करावतो नथी. ४५ अथवा वचनथी करावतो नथी, ४६ अथवा कायथी करावतो नथी, ४७ अथवा मनथी करनारने अनुमति आपतो नथी, ४८ अथवा वचनथी करनारने अनुमति अपतो नथी, | ४९ अथवा काययी करनारने अनुमति आपतो नथी.
पडुप्पन्नं संवरेमाणे किं तिविहं तिविहेणं संवरेह ?, एवं जहा पडिक्कममाणेणं एगूणपन्नं भंगा भणिया एवं संवरमाणेणवि एगूणपन्नं भंगा भाणियव्वा । अणागयं पञ्चक्खमाणे किं तिविहं तिविहेणं पञ्चकखाइ ? एवं ते चैव भंगा एगुणपन्ना भाणियव्वा जाव अहवा करेंतं नाणुजाणइ कायसा । समणोवासगस्स णं भंते ! पुव्वामेव थूलमुसावाए अपचक्खाए भवइ, से णं भंते! पच्छा पञ्चाइक्खमाणे एवं जहा पाणाइवायस्स सीयालं भंगसयं भणियं तहा मुसावायस्सवि भाणियब्वं । एवं अदिन्नादाणस्सवि, एवं थूलगस्स मेहुणस्सवि, थूलगस्स परिग्गहरवि जाव अहवा करेंतं नाणुजाणइ कायसा ॥ एए खलु एरिसगा समणोपासना भवंति, नो खलु एरिसगा आजीवियोवासगा भवति ॥ ( सूत्रं ३२८ ) |
[r] प्रत्युत्पन्न (वर्तमान) प्राणातिपातनो संवर (रोध) करतो ( श्रमणोपासक ) शुं त्रिविध त्रिविधे संवर करे ? इत्यादि.
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८ शतके उद्देशः ५
॥६५२॥

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