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८ शतके उद्देशः२
प्रज्ञप्तिः ॥६१८॥
[प्र.] हे भगवन् ! नारको शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी ? [उ०] हे गौतम ! नारको ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण छे. तेमां जे ज्ञानी छे ते अवश्य त्रण ज्ञानवाळा होय हे,ते आ प्रमाणे-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञानवाला छे. जे अज्ञानी छे तेंमां केटलाक | वे अज्ञानवाला छे अने केटलाएक त्रण अज्ञानवाला के ए प्रमाणे त्रण अज्ञानो भजनाए (विकल्पे) होय . [प्र०] हे भगवन् ! असुरकुमारो शुं ज्ञानी के के अज्ञानी छ ? [उ.] जेम नैरयिको कद्या तेम असुरकुमारो जाणवा. अर्थात् जेओ ज्ञानी के तेओ अवश्य प्रण ज्ञानवाळा होय छे, अने जेओ अज्ञानी के तेओ भजनाए त्रण अज्ञानवाळा होय छे. ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! पृथिवीकायिको शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी नथी पण अज्ञानी छे, अने ते अवश्य वे अज्ञानवाला छे, मतिअज्ञानी अने श्रुतअज्ञानी. ए प्रमाणे यावत् वनस्पतिकायिक सुधी जाणवू. [प्र०] बेइन्द्रिय जीवो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी पण छे अने अज्ञानी पण . जेओ ज्ञानी छे तेओ अवश्य बे ज्ञानवाला छे, ते
आ प्रमाणे-मतिज्ञानी अने श्रुतज्ञानी. जेओ अज्ञानी छे ते अवश्य बे अज्ञामवाला छे; ते आ प्रमाणे-मतिअज्ञानी अने श्रुतअज्ञानी. | ए प्रमाणे त्रीइन्द्रिय अने चारिन्द्रिय जीवो संबन्धे पण जाणवू. [प्र०] पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिको शुं ज्ञानी के के अज्ञानी छ ? [उ०] हे गौतम ! तेओ ज्ञानी छे अने अज्ञानी पण छे, जेओ ज्ञानी के तेमां केटलाक बे ज्ञानवाळा, अने केटलाक त्रण ज्ञानवाला छे, प प्रमाणे त्रण ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए (विकल्पे) जाणवां जीवोनी पेठे मनुष्योने पांच ज्ञान अने त्रण अज्ञान भजनाए होय | नरयिकोने क (सू. २५.) तेम वानव्यतरोने जाणवू. ज्योतिषिको अने वैमानिकोने अवश्य त्रण ज्ञान अने त्रण अज्ञान होय छ. [प्र.] हे भगवन् ! सिद्धो शुं ज्ञानी छे के अज्ञानी छ ? [उ.] हे गौतम! सिद्धो ज्ञानी छे पण अज्ञानी नथी. तेओ अवश्य
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