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व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥५९९॥
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अणु० जाव परिणए वा ७॥ जइ मीसापरिणए कि मणमीसापरिणए वयमीसापरिणए कायमीसापरिणए ?, गोयमा! मणमीसापरिणए वा वयमीसा० वा कायमीसापरिणए वा, जइ मणमीसापरिणए किं सच्चमणमीसा
P८ शतके परिणए वा मोसमणमीसापरीणए वा जहा पओगपरिगए तहा मीसापरिणएवि भाणियब्वं निरवसेस जाव
| उद्देशः१ पज्जत्तसब्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिंदियकम्मासरीरगमीसापरिणए वा अपज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणु. ॥५९९॥ जाव कम्मासरीरमीसापरिणए वा ।
प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होय तो शु मनुष्याहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ? इत्यादि. [उ०] हे गौतम ! जेम आहारकशरीरसंबन्धे कह्यं तेम आहारकमिश्रसंबन्धे पण कहे. (६.) [प्र०] हे भग-14 वन् ! जो ते एक द्रव्य कार्मणशरीरप्रयोगपरिणत होय तो शुं एकेन्द्रियकार्मणशरीरकायप्रयोगपरिणत होय के यावत् पंचेन्द्रियकामणशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ! [उ०] हे गौतम ! ते एक द्रव्य एकेन्द्रियकार्मणशरीरकायप्रयोगपरिणत होय. ए प्रमाणे जेम प्रज्ञापना सूत्रना 'अवगाहनासंस्थान' पदने विषे कयुं छे तेम अहीं पण जाणवू, यावत् पर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिकदेवपंचेन्द्रिय-18 कार्मणशरीरकायप्रयोगपरिणत होय, के अपर्याप्तसर्वार्थसिद्धअनुत्तरौषपातिककाणिकायप्रयोगपरिणत होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य मिश्रपरिणत होय तो शुं मनोमिश्रपरिणत होय, वचनमिश्रपरिणत होय, के कायमिश्रपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम! ते मनोमिश्रपरिणत वचनमिश्रपरिणत होय, के कायमिश्रपरिणत होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य मनोमिश्रपरिणत होय | तो शुं सत्यमनोमिश्रपरिणत होय, मृषामनोमिश्रपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम ! जेम प्रयोगपरिणत पुद्गलो संबन्धे का तेम में
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