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८ शतके
व्याख्याप्रज्ञप्तिः ॥६०४॥
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॥६०१॥
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[प्र०] हे भगवन् ! जो वे द्रव्यो सत्यमनःप्रयोगपरिणत होय तो शुं १ आरंभसत्यमनःप्रयोगपरिगत होय, २ अनारंभसत्यमनःप्रयोगपरिगत होय, ३ संरंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय, ४ असंरंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय, समारंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत | होय के ६ असमारंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम! ते बे द्रव्यो आरंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय, यावत् असमारंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय. १ अथवा एक द्रव्य आरंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय अने बीतुं अनारंभसत्यमनःप्रयोगपरिणत होय. ए प्रमाणे ए रीते द्विक संयोगो करवा. ज्यां जेटला द्विकसंयोगो थाय त्यां ते सघळा कहेवा; यावत् सर्वार्थसिद्धवैमानिकदेव सुधी कहेवू. [प्र०] हे भगवन् ! जो वे द्रव्यो मिश्रपरिणत होय तो शुं ते मनोमिश्रपरिणत होय ? इत्यादि. [उ०] हे गौतम ! प्रयोगपरिणत संबंधे का तेम मिश्रपरिणतसंबंधे कहेQ. [प्र०] हे भगवन् ! जो बे द्रव्यो विस्त्रसापरिणत होय तो शुं ते वर्णपणे परिणत होय , गन्धपणे परिणत होय ? इत्यादि [उ०] हे गौतम! ए रीते पूर्व कह्या प्रमाणे विस्रसापरिणतसंबन्धे पण जाणवू, यावत् एक द्रव्य समचतुरस्रसंस्थानपणे परिणत होय अने बीजु आयतसंस्थानपणे पण परिणत होय. [प्र.] हे भगवन् ! त्रण द्रव्यो शुं प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय, के विस्रसापरिणत होय? [उ०] हे गौतम ! ते (त्रणे द्रव्यो) प्रयोगपरिणत होय, मिश्रपरिणत होय अने विस्रसापरिणत पण होय. १ अथवा एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होय अने बे मिश्रपरिणत होय, २ अथवा एक प्रयोगपरिणत होय अने बे विस्त्रसापरिणत होय, ३ अथवा बे प्रयोगपरिणत होय अने एक मिश्रपरिणत होय, ४ अथवा वे प्रयोगपरिणत होय अने एक वित्रसापरिणत होय, ५ अथवा एक मिश्रपरिणत होय, ५ अथवा एक मिश्रपरिणत होय अने वे विस्रसापरिणत होय. ६ अथवा चे मिश्रपरिणत होय अने एक विनसापरिणत होय. ७ अथवा एक प्रयोगपरिणत एक मिश्रपरिणत अने एक विस्रमापरिणत होय. .
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