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व्याख्याप्रज्ञातिः ॥६१२॥
ARRIAGE
माणियदेवकम्मासीविसे नो कप्पातीयवेमाणियदेवकम्मासीविसे, [प्र०] हे भगवन् ! जो देव कर्माशीविष छे तो शुं भवनवासी देव कर्माशीवित छे के यावत् वैमानिकदेव कर्माशीविष छे ?
८ शतके [उ०] हे गौतम ! भवनवासी देव कर्माशीविष के, वानव्यंतर देव, ज्योतिष्क देव अने वैमानिकदेव पण कर्माशीविष छे. [प्र०] 14
& उद्देशः२ | हे भगवन् ! जो भवनवासी देव कर्माशीविष छे तो शुं असुरकुमार भवनवासी देव कर्माशीविष छे के यावत् स्तनितकुमार भवनवासी |॥६१२॥
देव कर्माशीविष छ ? [उ.] हे गौतम! असुरकुमार भवनवासी देव पण कर्माशीविष छे, यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देव पण यावत् कर्माशीविष छे. [प्र०] हे भगवन् ! जो असुरकुमार यावत् कर्माशीविष छे तो शुं पर्याप्त अमुरकुमार भवनवासी देव कर्माशी-14 विष छे के अपर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव कर्माशीविष छ ? [उ०] हे गौतम! पर्याप्त असुरकुमार भवनवासी देव कर्माशीविष नथी, पण अपर्याप्त अमुरकुमार भवनवासी देव काशीविष छे, ए प्रमाणे यावत् स्तनितकुमारो सुधी जाणवू. [प्र.] जो वानव्यंतर देवो कर्माशीविष छे तो शुं पिशाच वानव्यंतर देवो कर्माशीविष छे? इत्यादि. [उ०] हे गौतम ! तेओ बधा अपर्याप्तावस्थामा कर्माशीविष छे, तेम सघळा ज्योतिष्को पण अपर्याप्तावस्थामा कर्माशीविष छे. [प्र.] हे भगवन् ! जो वैमानिक देव कर्माशीविष छे तो शुं कल्पोपपन्नक वैमानिक देव काशीविष छे के कल्पातीत वैमानिक देव कर्माशीविष छ? [उ.] हे गौतम ! कल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्माशीविष छे, पण कल्प तीत वैमानिक देव कर्माशीविष नथी.
जइ कप्पोवगवेमाणियदेव कम्मासीविसे किं मोहम्मकप्पोव० जाव कम्मासीविसे अच्चुयकप्पोवग जाव कम्मासीविसे ?, गोयमा! सीहम्मकप्पोक्ग वेमाणियदेवकम्मासोविसेवि जाव सहस्सारकप्पोवगवेमाणियदेव
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