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८ शतके | उद्देशः२
६१३॥
|कम्मासीविसेवि, नो आणयकप्पोवग जाव नो अच्चुयकप्पोवगवेमाणियदेव०, जह सोहम्मकप्पोवग जाव व्याख्या-1*कम्मासीविसे किं पज्जत्तमोहम्मकप्पोवगवेमाणिय. अपज्जत्तगसोहम्मग०१, गोयमा? नो पजत्तसोहम्मकप्पोवप्रज्ञप्तिः भगवेमाणिय०,अपजत्तसोहम्मकप्पोवगवेमाणियदेवकम्मासीबिसे,एवं जाव नो पज्जत्तसहस्सारकप्पोवगवेमाणिय ॥६१३॥ जाव कम्मासीविसे, अपजत्तमहस्सारकप्पोवगजावकम्मासीविसे ।। (सूत्रं ३१५)॥
I [प्र०] जो कल्पोपपत्रक वैमानिक देव काशीविष छे, तो शुं सौधर्मकल्पोपपत्रक यावत् कर्माशीविष छ के यावत् अच्युत
कल्पोपपन्नक देव कर्माशीविष के ? [उ०] हे गौतम ! सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्माशीविष छे. यावत् सहस्रारकल्पोपन्नक ४ वैमानिक देव कर्माशीविष छे; पण आनतकल्पोपन्नक, यावत् अच्युतकल्पोपपन्नक बमानिक देव काशीविष नथी. [प्र.] हे भग
| वन् ! जो सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्माशोविप छे, तो शुं पर्याप्त सौधमकल्पोपपन्नक वैमानिक देव कर्माशीविष छे के 21 अपर्याप्त सौधर्मकल्पोपन्नक वैमानिक देव कमीशीविष छे ? [उ०] हे गौतम ! पर्याप्त सौधर्मकल्पोपन्नक वैमानिक देव कर्माशीविष
नथी, पण अपर्याप्त सौधर्मकल्पोपपन्नक वैमनिक देव यावत् कर्माशीविष के ए प्रमाणे यावत् पर्याप्त सहस्रारकल्पोपपन्नक देव यावत् कर्माशोविप नथी. पण अपर्याप्त सहस्रारकल्पोपपन्नक देव यावत् कर्माश विष हे ॥ ३१५ ।। Pा दस ठाणाई छउमत्थे सधभावेण न जाणइ न पासह, तंजहा-धम्मस्थिकायं १ अधम्मस्थिकार्य आगा
सत्थिकार्य ३ जीवं असरीरपडिबद्धं ४ परमाणुपोग्गल ५ सई ६ गंध ७ वातं ८ अयं जिणे भविस्सइ वा ण वा भविस्सइ ९ अयं सव्वदुक्वाण अंतं करेस्सति वा न वा करेस्सह १०॥ याणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा
E-CLASHRES1610
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