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अपनत्तगा य । जइ पंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए किं तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीध्याख्या
हैरकायप्रोगपरिगए मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए ?. गोयमा तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा मणु-18 ८ शतके प्रज्ञतिः
स्सपांचंदिय जाव परिणए वा, जइ तिरिक्खजोणिय जाव परिणए कि जलचरतिरिक्खजोणिय जाव परि-16 | उद्देशः१ ॥५९४॥ णा वा थलचर० खहचर०, एवं चउक्कओ भेदो जाव खहचराणं ।
॥५९४॥ [प्र.] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य एकेन्द्रिय औदारिकशरीरकप्रयोगपरिणत होय तो शुं पृथिवीकायिकएकेन्द्रियऔदारिकशरीकायप्रयोगपरिणत होय के यावत् वनस्पति कायिकएकेन्द्रियऔदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम ! पृथिवीकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के यावत् वनस्पतिकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक | द्रव्य पृथिवीकायिकएकेन्द्रिय औदारिकशरीरप्रयोगपरिणत होय शुं सूक्ष्मपृथिवीकायिक-एकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के बादरपृथिवीकायिकए केन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम ! सूक्ष्मपृथिवीकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के बादरपृथिवीकायिकएकेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य सूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय तो शु पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय, के अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय ? [उ०] हे गौतम ! पर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय के अपर्याप्तसूक्ष्मपृथिवीकायिककायप्रयोगपरिणत होय. ए प्रमाणे बादरपृथिवी
कायिको जाणवा. ए प्रमाणे यावत् वनस्पतिकायिकना चार भेद (सूक्ष्म, चादर, पर्याप्त अने अपर्याप्त ) अने बेइन्द्रिय, त्रीइन्द्रिय, II अने चउरिन्द्रिय जीवोना बे भेद पर्याप्त अने अपर्याप्त जाणवा. [प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य पंचेन्द्रियऔदारिकशरीरप्रयो
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