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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः ॥५९६ ।।
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परिणए ?, गोयमा ! एगिंदिय जाव परिणए वा पंचिदिय जाव परिणए वा,
[प्र०] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य मनुष्यपंचेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय तो शुं संमूर्च्छिममनुष्यपंचेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय के गर्भजमनुष्यपंचेन्द्रियकायप्रयोगपरिणत होय ? [ उ०] हे गौतम! ते (एक द्रव्य) [ संमूर्छिम अने गर्भज ] मनुष्कायप्रयोगपरिणत होय. [प्र० ] हे भगवन् ! जो ते एक द्रव्य गर्भजमनुष्य कायप्रयोग परिणत होय तो शुं पर्याप्तगर्भजमनुष्य कायप्रयोगपरिणत होय के अपर्याप्तगर्भजमनुष्य पंचेन्द्रिय औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होय? [उ०] हे गौतम ! पर्याप्तगर्भजमनुष्यकायप्रयोग परिणत होय के अपर्याप्तगर्भजमनुष्यकायप्रयोगपरिणत होय. [ प्र०] हे भगवन्! जो ते एक द्रव्य औदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग परिणत होय तो शुं एकेन्द्रियऔदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग परिणत होय, बेइन्द्रिय औदारिकमिश्रकायप्रयोगपरिणत होय के यावत् पंचेन्द्रि यऔदारिकमिश्रकाय प्रयोगपरिणत होय ? [अ०] हे गौतम! एकेन्द्रिय औदारिकमिश्रकायप्रयोग परिणत होय. जेम 'औदारिकशरीरकाय प्रयोगपरिणत' नो आलापक को तेम 'औदारिकमिश्रशरीर कायप्रयोगपरिणत' नो पण आलापक कहेवो. परन्तु विशेष ए छे के 'औदारिकमिश्रकायप्रयोगपरिणत'नो आलापक बादरवायुकायिक, गर्भजपंचेन्द्रियतिर्थंच अने गर्भजमनुष्य पर्याप्ता अपर्याप्ता एओने अने ते शिवाय बाकीना अपर्याप्ता जीवोने कहेवो. [प्र०] हे भगवन् ! जो एक द्रव्य वैक्रियशरीरकाय प्रयोगपरिणत होय तो शुं एकेन्द्रियवैक्रिय शरीर काय प्रयोगपरिणत होय के यावत् पंचेन्द्रियवै क्रियशरीरकायप्रयोगपरिणत होय ? [अ०] हे गौतम ! ते एकेन्द्रि यवैक्रियकायप्रयोगपरिणत होय के पंचेन्द्रियवैक्रियकायप्रयोगपरिणत होय.
जइ एगिंदिय जाव परिणए किं वाउक्काइयए गिंदिय जाव परिणए अवाउक्काध्यएगिंदिय जाय परिणए ?,
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८ शतके उद्देशः १ ।।५९६।।