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४२. जीवाभिगमे वयण, असंघयणी नरक सुर ।
पद बीजे दिव्य संघयण, पिण नहि छै षट मांहिलो ।।
४२. तेसि णं भंते ! जीवाणं सरीरा किसंघयणी पण्णत्ता? गोयमा ! छण्हं संघयणाणं असंघयणी
(जीवा० १/९५) से कि तं देवा ?.......छण्हं संघयणाणं असंघयणी
(जीवा० १/१३५) कहि णं भंते ? ......"दिव्वेणं संघयणेणं.......
(पण्ण० २/३०)
४३. संघयण जिसा उदार, पुद्गल छै तेहनें कह्या।
संघयण नाम विचार, तिम असन्ती सुर नारकी।। ४४. दर्शन अवधि विभंग, ते पाम्यो नहिं ज्यां लगे।
असन्नी जिसोज अंग, तिण सं असन्नी जिन कह्या ।। ४५. बांध्यां जे पर्याय', भेद हसी ए चवदमों।
तिण कारण कहिवाय, अपर्याप्तो सन्नी तणों ।। ४६. अपर्याप्त धुर भेद, प्रज्या बांध्यां द्वितीय ह।
तृतीय भेद संवेद, पर्याय बांध्यां चतुर्थो । ४७. पंचम भेद पिछाण, पर्याय बांध्यां ह छठो ।
सप्तम भेद सुजाण, पर्याय बांध्यां अष्टमो ।। ४८. नवमों भेद निहाल, पर्याय बांध्यां दशम है।
एकादशमों भाल, पर्याय बांध्यां बारमो ।। ४६. तेरम भेदज ताम, पर्याय बांध्यां चवदमों।
पिण इग्यारमा नों आम, चवदम भेद हुवै नहीं।। ५०. सन्नी असन्नी सोय, नरक विषे बिहुँ ऊपनां । ___अंतर्महर्त्त जोय, अपर्याप्त बिहुँ रहै ।। ५१. बिहं बांध्यां पर्याय, होसी भेदज चवदमों।
अपर्याप्त कहिवाय, भेद चवदमा नां बिहं ।। ५२. ते माटे बिहं मांय, कहिय भेदज तेरमों।
पिण ग्यारम नहिं पाय, न्याय दृष्टि करि देखियै ।। ५३. सम्यग प्रकारे सोय, विभंग अन्नाण नावियो।
असन्नी सरिखो जोय, तिणसं असन्नी तसं कह्यो ।। ५४. पिण ए तेरम भेद, भेद नहीं असन्नी तणो।
तिण कारण संवेद, नारक नै असन्नी कह्यो ।' (ज० स०) ५५. *एक दोय तीन जघन्य थी रे, उत्कृष्टा संख्यात ।
उपजै छ भवसिद्धिया जी, एम अभव्य आख्यात ।। और गर्भज-- दोनों प्रकार के मनुष्यों की अवगाहना दी गई है। वहां गर्भज मनुष्य के पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो भेद किए हैं। पर संमूच्छिम का कोई भेद नहीं है (अनु० सूत्र ४०५ का पाद टिप्पण, पृ० ३६६) । इसके आधार पर निष्कर्ष यह निकलता है कि संमूच्छिम मनुष्य के भी कुछ पर्याप्तियां होती हैं ।
इस दृष्टि से उसे पर्याप्त मान लिया गया है । १. आगम साहित्य में पर्याप्ति के स्थान पर 'पज्जत्ति' शब्द आता है । पज्जत्ति से
पज्जा, पर्या, प्रज्या आदि शब्द बनते गए। इन्हीं शब्दों का एक रूप बन गया पर्याय । यह शब्द पर्याय अर्थ का नहीं, पर्याप्ति अर्थ का वाचक है। *लय : अभड भड रावणा इदा स्यूं अडियो
५५. एवं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया,
१२८ भगवती जोड़
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