Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बोलता-बोलतां हुई बार, चलावै झुठ मैं जी। जब सुनखत्र नामे अणगार, आयो तिहां ऊठन जी ॥१५।। ते पिण कहिवा लागो आम, बाल्यो थें साध नैं जी। हिवै मत बोले झूठ बेकाम, छोड़े विषवाद नै जी ।।१६।। सर्वाणभूती नी परे ताम, समझावै एहने जी। तूं साख्यात गोसालो छ आम, झूठो बोलो केहने जी ॥१७॥ समझावण लागो रूड़ी रीत, समझयो नहीं पापियो जी। वीर रा गुण करै वनीत, इणनै उथापियो जी ॥१८॥ जब ओ कोप चढयो ततकाल, निलाड़ी सल चाढने जी। इणरी राख करूं बाल जाल, तेजू लेस्या काढन जी ॥१६॥ इणने बालण लेस्या मेहली आप, ओ तो बलियो नहीं जी। लेस्या थी उपनों परिताप, असाता हुई सही जी ॥२०॥ तिण बांद्या भगवंत रा पाय, सुमतारस मन धरचो जी। साध-साधवी सर्व खमाय, आउखो पूरो करयो जी ॥२१॥
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दूहा दोय साध गोसाले बालिया, समोसरण रै माय । तीजी बार गोसालो भगवान सूं, झगड़े सनमुख आय ॥१॥ रे कासव ! तूं इम कहै, गोसालो म्हारो सिष्य छो एह । इसड़ो झठ न बोलियै, तुझ मुझ किसो सनेह ॥२।। गोसालो मंखलीपूत हूं नहीं, तूं मत कर म्हारी बात। हिवै बोल्यो तो बाल भसम करूं, कर देसू सगलां री घात ।।३।। आगे अजोग बोल्यो हुँतो, तिणथी बोल्यो अजोग वशेख । आज सगलां में पूरा पाडसू, बाकी लारै न राखू एक ॥४॥ दोय साधां गोसाला मैं जिम कह्यो, तिमहीज कह्यो भगवंत। बोहसुरति कियो म्हैं तो भणी, ओर सगलोई कह्यो विरतंत।।५।। तूं मंखली-पुत्र डाकोतरो, तूं निश्चै गोसालो साख्यात । हिवै तूं मोसू अन्हाखी थके, पड़िवजियो मिथ्यात ॥६।।
ढाल : १६
[रे जीव मोह अणुकंपा नाणिय]
एहवा वचन गोसालो सांभले, ओ तो कोप चढ्यो ततकाल रे। मिसमिसायमान करै घणों, अभितर लागी झालोझाल रे।
लेस्या मेली गोसाले वीर नै ॥१॥ आं०
गोसाला री चौपई, ढा० १५,१६ ४०३
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