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सात-आठ पग पाछो ओसरै, तिण ठामें कोधी समूदघात रे। तेज लेस्या काढी तिण बाहिरे, भगवंत री करवा घात रे ॥२॥ तेज लेस्या सरीर थी नोकली, वीर साम्हो आवै छै ताय रे। ते किम पेस त्यांरा सरीर में, ते दिष्टंत सूणो चित ल्याय रे ।।३।। उकलिया ने मंडलिया वायरो, पेस पोली वस्तु रै मांय रे। परवत ने थंभादिक तेहथी, अटकै तिण ठामे जाय रे ।।४।। परवत थंभादिक नैं वायरो, भेदतो फोड़तो मत जाण रे। वायरा ज्यू तेज लेस्या जाणजो, वीर सरीर थंभ समाण रे॥५॥ ते किणविध पेस त्यांरा सरीर में, तेज लेस्या तिण वार रे। नोपकर्मो आउखो वीर नों, त्यांरो कुण छै मारणहार रे ॥६॥ न हुई न हुवै नै होसी नहीं, तीनई काल में बात रे। अरिहंत भगवंत तेहनी, समर्थ नहीं करवा घात रे ।।७।। लेस्या परिदिखणा करती थकी, आतो ऊंची चाली आकास रे । ऊंचा थी हणाणी हेठो पड़ी, कठै रहिवा न पाम्यो वास रे ॥८॥ जब गोसाला रा सरीर में, तेज लेस्या पेठी आय रे। पोता री लेस्या थी पोते बल, तिणरै लागो सरीर में लाय रे ॥।। ते बलू-बलू करतो थको, कहै छै भगवंत नै एम रे। सुण रे आउखावंत कासवा ! तूं रह्यो मत जाणे कुसले खेम रे॥१०॥ तोनै होसी छ मास रै छेहड़े, रोग पितंजर ततकाल रे। . जद बलू-बलू करतो थको, छदमस्थ थको करसी काल रे ।।११।। वोर कहै गोसाला! सांभले, हूं नहीं करूं छ मासे काल रे। छदमस्थ थको मरूं नहीं, झूठ बोल तू आल-पंपाल रे ॥१२॥ हंतो सोले वरस लग विचरस, गंधहस्ती नी परे साहसीक रे। केवलग्यानी थको जासू मुगत में, ते तोनें नहीं जाबक ठीक रे ॥१३।। थे मौन तेजू लेस्या मेहली तका, पेठी थारा सरीर में आय रे । तिण थी रोग पितंजर ऊपज, दाह लागै सरीर र माय रे ।।१४।। जब तूं बलू-बलू करतो थको, असाता करे होसी हेरान रे। काल करसी सातमी रात में, छदमस्थ थको बिण ग्यान रे ॥१५॥
दहा.
यांरै माहोमां विगट बातां हुई. ते पड़ी घणां रै कान । ते बात लोकां में विस्तरी, न्याय जाणे विरला बुधवान ॥१॥ हिवै सावत्थी नगरी रै मझे, घणां पंथ मारग रै माय । लोक माहोमां बातां करै, ते सुणजो चित ल्याय ॥२॥
४०४ भगवती-जोड़
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