Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 427
________________ इसड़ा अजोग ने वीर दिख्या दीधी, वले इसड़ा अजोग नैं वीर बचायो । ते अवस भावी भाव टालणी नावे, एक अधेरा से निश्च ओहीज उपायो ।। १६ ।। गोसाला कुपातर ने वीर बचायो, तिण मांहे समदिष्टी धर्म न जाणे । जे धर्म जाणं तो धर्म में भूला, ते सावद्य निरवद्य कम पिछाणे ॥ २० ॥ असंजती गोसालो कुपातर, तिण नै साझ सरीर से दीधो । धर्म जाणें तो जगत दुःखी थो, वले वीर ए काम कांय न कीधो ॥ २१ ॥ तेजू लेस्या मेल गोसालो बाल्या, दोय साध भसम करी काया लवदधारी या साध पणाई मोटापुरषां आनें क्यूं न बचाया ॥ २२ ॥ गोसाला कुपातर ने वीर बचायो, तिणमें धर्म कहे ते विना विचारो तिण जिनमारग ने ओलखियो नाहि, त्यांरा घट मांहे पूरो पोर अंधारी ॥२३॥ गोसाला नैं मरतो वीर बचायो, जो तिण मांहे धर्म जाणें जिनराय । तो आप तणां दोय साध न राख्या, ओ पिण किण विध मिलसी न्याय ||२४|| गोसाला ने वीर बचायो तिण में, धर्म जाणें सासणनायक साम । दो साध बचावता आप तणां वीर, वले फिर-फिर करता वीर ओहिज काम ||२५|| जगत नैं मरता देख्या भगवंते, कठेइ आडा न दीधा हाथ । धर्म जाणं तो आगो नहीं काढत तिरण तारण हंता श्री जगनाथ ||२६|| जो गोसाला ने वीर नहीं बचावता तो पट जातो अछेरो एक । निश्चे होनहार ते किणविध टाले, समझो रे गीसाला में वीर बचायो तिण सूं निश्चेई वले लोहीठाण भगवंत नैं कीधो, वले दोय साधां री कीधी घात ||२८|| गोसालो बचियां सूं राजी हुआ ते, गोसाला रा केड़ायत जाणो । तिण दुष्टी रा जीवियां में धर्म जाणें, त्यांरै मोह मिथ्यात उदे हुओ आणो ॥ २६ ॥ ज्यांरी सरधा नैं आचार दोनूं खोटा छै, त्यां तो गोसाला रो लीधो सरणो । ते गोसालो-गोसालो कर रह्या मूरख, पिण गोसाला रो पूरो न काढे निरणो ॥ ३० ॥ गोसाला ने पाले पोसे मोटो कीधो, त्यां माइतां ने जो होसी धर्मो तो तिने बचाया त्यांनं पिण धर्म, तिरो ओ परमार्थ ओहीज मर्मो ॥३१॥ , समझो थे आण विवेक ||२७|| बधियो बोहत मिथ्यात | तठा पेहली तो जीतम रो उपगार, ते तो उपगार माइतां रो जाणो । तठा पछनो जीतब से उपगार, ते तो वीर तनों उपगार पिछाणो ||३२| ओ तो सावद्य जीतब से उपगार, ते तो मोह करम वस रागज आण । वले पेहली उपगार कियो गोसाला थी, ग्यानादिक गुण रोते, तो निरवद जान ||३३|| दूहा । गोसालो खाली हुवो सर्वथा, कोठग बाग रे गांव तप तेज गमायो सर्व आपरो तो ही गरज सरी नहीं कांय ॥ १ ॥ वीर सहित सर्व साधां तणीं, जाग्यो घात कर तिज ठाम । सासण घापसू मांहरो, ते सरघो न एको काम ॥२॥ रुद्र दिष्टे देखतो थको लांबा मेलतो निसास। दाढ़ी मूंछा रा केस उखणं, पणी लाज खणतो तास ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only गोसाला री चौपई, ढा० १९ ४०९ www.jainelibrary.org

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