Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 435
________________ थे काल गयो जाणों मो भणी, हं कहं ते सगला कीजो रे । डावा पग रै बांधजो सींदरी, म्हारा मंढा में थूकीजो रे ।।१६।। सावत्थी नगरी में मझे, तीन च्यार घणां पंथ तामो रे । तिहां आमो-साह्मो सरीर घीसालजो, बारूंवार पारजो मामो रे ।।२०।। ठाम-ठाम कीजो उद्घोषणा, मोटे-मोटे सब्दे विख्यातो रे । गोसालो नहीं जिण केवली, पापी कीधी साधां री धातो रे ।।२१।। तिण आउखो आज पूरो कियो, छदमस्थपणे कियो कालो रे । इत्यादिक निज ओगुण कह्या घणां, ते कहिता म कीजो टालो रे ।।२२।। तार्थंकर अरिहंत जिण केवली, ते तो समण भगवंत महावीरो रे । त्यांनै परगट कीजो सहर में, घणां लोकां रै तीरो रे ।।२३।। मुझ सरीर नै भूडी तरे, काढजो नगरी बारो रे। जे कही ते सर्व सरलपणे, पछ काल कियो तिण वारो रे ।।२४ ० ० ० गोसाले काढयो सल आपरो, तिण पाछ न राखी कांय । तिण मान अभिमान सर्व छोड़ने, निज अवगुण दिया बताय ।।१।। एहवी करै आलोवणा, ते तो विरला जाण। सल काढे मरै तिण पुरुष नां, जिणवर करै छै बखाण ।।२।। हिवै गोसाला रा थिवरा तिहां, काल गयो गोसालो जाण। त्यांन आय बणी छै सांकड़ी, त्यांस मेलणी नांव माण ।।३।। ते वचन गोसाला रो राखवा, वले निज संस राखण काज । ते नाम मातर छान करै, चोड़े करतां आवै लाज ।।४।। गोसाले तो खोटो मत छोडियो, तिण तो जाबक दियो छ उठाय। जे भारीकरमा जीवड़ा, त्यांस मत छोड्यो नहिं जाय ।।५।। ढाल : २५ [सुण हे सुवटी मत कर सुत नी आस] थिवर मांहोमांही चितवै, हिवै करवो कवण विचार । जे नायक था सासण तणां, त्यां दीधी बात बिगाड़। सुणो भाई थिवरां, म करो मत रो उघाड़।।१।। आं० आपे तो यांने जाणता, ए ग्यान गुणां भरपूर । त्यां तो मुख सं इम कह्यो, म्है जाबक कियो फितूर ।।२।। उघाड़ कियां में गुण नहीं, खोटो जाणे रे लोक । जब पड़े बिखेरो मत मझे, सह जाण लेवेला फोक ।।३।। गोसाला री चौपई, ढा० २४,२५ ४१७ Jain Education Intemational For Private & Personal use only www.jainelibrary.org

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