Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 454
________________ दूहा ते जीव स्वार्थसिध मझे, सुर-सुख विलसी एथ । देव आउखो पूरी करी, चव नें जासी केत ? ।।१।। [ वीर सुणो मोरी विनती] , वीर कहै सुण गोयमा ए चवसी हो गोसाला रो जीव महाविदेह तर मझे, जनम लेसी हो मोटे कूल अतीव । बीर कहै सुण गोयमा ! ॥१॥ अ० एंठा नाज ॥ ३॥ धर्म में दिदृ थाय । रिध कर ने अति दीपतो, वस्तीर्ण हो घणां महल आवास । पिलंग सिंघासण पालखी रथ घोड़ा हो हाथी हुवे तास ||२|| माणक मोती जिहां घणां, सोनो रूपो हो धन बधतो व्याज । भात वाणी जी पणां उगरता हो हा दास-दासी जेहने घणां गायां भेस्या हो छालो प्रमुख जाण । धन कर गंज सके नहीं, तिण घर में हो उपजसी आण || ४ || पुत्र गर्भ आव्यां थकां, मां-बाप हो सवा नव मासे जनमसी, सुखमाल हो पूरी इंद्री वाय ॥५॥ लषण वंजण गुण भला, परमाणे हो सहु सुंदर अंग । सोम चन्द्रमा सारिखो, मनगमतो हो तिरो रूप सुचंग || ६ || जनम महोधवचन करी तीजे दिन हो बंद सूर्य दिखाय छठे दिन छठी जगावसी, बारमें दिन हो सुध होसी न्हाय ||७|| कहिसे न्यात जीमाड़ ने जिन दिन हो गर्भ ऊपनों ताम । दिढ हूवा म्है धर्म में, दिपड़नी हो दमा इण रो नाम || 5 || आंगण गोडालिये चालणों, सीख्यो जब हो खरचं धन माल । पगे चाल्यां थड़ी कियां, वसतु नी हो अगड ले झाल ||६|| जीमण कवल वधारियां, बोली सोख्या हो विधायां कान | वरसी गांठज लेखव्यां, प्रथम मुंडण हो ओछव दे दान ।।१०।। पांच धाए वो थको, खीरधाई हो पेहली कहवाय । 1 मंजण धाय न्हवरावसी, मंडण धाई हो सिणगार कराये ॥ ११ ॥ । अंक धाय खोते लिये फोलावण हो करामी केल देश अठारे गे दासिया, खोजाविक हो करने अति बेल ||१२|| कुबजा बांकी देसनी, चिलाती हो देस नी केइ जोय । वामणी वामण देस नी वडभी नो हो हियो ऊंचो होय ||१३|| बबर चोसिया जोनिया, पलवीया हो ऋषी गणका जाण । चरुणिया लासिया भणी लाउसिया हो दलिया पिाण ।।१४।। सिंघल अरव देस नी गुलिद ही पंकी से देस मही सबरी पारसी आप आपणा हो देस नां छं वेस ।। १५ ।। । ४३६ भगवती जोड ढाल : ४० Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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