Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 455
________________ 1 ते दास्यां डाही घणी मनचित्या हो करे आफै काम । वय तुरणी विनयवंती, घणां खोजा हो अंतःपुर अभिराम ।।१६।। पालसी बालक ने प्रीत . हंसे लेसी हो सह हाथोहाथ बाल लीला करावी, नहि मूकं हो रहे दिन-रात ॥ १७॥ एक खोला थी बीजे लिये नचावै हो गाए गीत विनोद | हालरियो देहेत . निज माने हो नित का प्रमोद ॥ १८॥ मधुर वचन बोलावसी, रमावण रो हो सगलां उछरंग । टोपी भूगो वोह रंग नां, रतन जड़या हो सो गेणा सुचंग ।। १६ ।। रमणीक मणी रतनां जड़गो, तिण गण हो कीला करसी बाल । विधन रहित सुखे बधे गिरि-गुफा हो जिम चंपा नीं हाल ॥ २० ॥ कला-आचार्य में सूपसी, जाभेरो हो वरस आठ परमाण कला बोहितर सीखसी अठार देसी हो होसी भाषा तो जाण ।। २१ ।। नव अंग सूता जागसी, द्रव इन्द्री हो आठ ने मन जाण । गीत रित गंधरव कला, नाटक में हो डाहो चतुर सुजाण ॥ २२ ॥ सिणगार सुंदर रूप में हमण बोलण हो चालण री प समझसी लोक आचार में, जुध जीपण हो सुरवीर अनूप ||२३| भोग जोग समर्थ हुसी, अबीहतो हो फरसी काल अकाल । मात-पिता वह धामसी, मनगमता हो कामभोग रसाल ||२४|| पिन ए कंवर न राचसी विधिया रस हो गिरधी नहि थाय । जिम ए कमल कादे हुवो, जल बधियो हो पिण नहीं लिपाय ||२५|| तिम काम का अपनों, भोग जल सूं हो वधसी जाणो एह । पिण न लेवे काम भोग में सजन सूं हो न लगाये नेह ।।२६।। । दुहा तिण अवसर पधारसी, मोटा ऋष अणगार | मुगतनगर नां दायका. ग्यान तणां भंडार ||१|| लोक जासी वांदण भणी, थिवर पधारचा जाण । दिपइनो पण जावसी कर मोठे मंडाण || २ || वंदना करसी भाव सूं, नीचो अंग नमाय । मुनिवर देसी देखना ते गुणसी चित लगाय ॥३॥ वाण अपूर्व सांभली, रुचमी अंगो-अंग । विरकत होय संसार में गती जावण उच्छरंग ॥४॥ मात-पिता ने पूछे तिहां, संजम लेसी सूर तपसा करे घणघातिया, करम करसी चकचूर ||५|| केवलम्यान उपजसी तिहां वाणी वागरसी तिगवार । घणां जीवां ने समझाय नैं, करसी मुगत में तयार ॥ ६ ॥ केवलग्यान उपना पर्छ, समण निग्रंथ ने बोलाय ।. कहिसी पोते दुख भोगव्या तिके, वले निज आंगुण देसी सुणाय ॥ ७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only गौसाला री चौपई, ढा० ४० ४३७ www.jainelibrary.org

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