Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 436
________________ आपां ने दिन काढणा, इणहीज मत रै मांय । 1 तिसुं बात वारे मत काटजो चुप राख्यां गुण बाय || ४ || गोसाले को छै जिम करां, तो लागे न्यात जात सर्व लोक में, जाओ पणी विपरीत। परतीत ||५|| करवा लागा विचार | जड़या किमाह ।।६।। रे जाय । बणाय ||७|| गोसालो काल गयां थकां जब कुंभारी तां घर तणां, आडा कुंभारी नीं जायगां मझे, बहु मझ देस में नगरी आलंकी सावत्यो, तिहां रूड़ी रीत डावा पग रे बांधी सींदरी, गोसाला रै तिण ठाम । तीन बार क्यो मुख तेहने वले करवा लागा आम ||८|| तिण सावत्थी नगरी मझे, तीन च्यार घणां पंथ मांय । आमो साह्मो घसाल्यो तेहने, सींदरी हाथ संभाय ॥ ६ ॥ नौचो-नीचो मुख करी, सब्द कह्यो तिण काल । उदघोषणा करने को, ओली-पूत गोसाल ||१०| ओ नहीं अरिहंत जिण केवली, ओ डाकोतरा री जात । इण कियो अकार्य पापिये, कीधी दोय साधां री घात ।। ११ । । छदमस्थपणे ओ चल गयो, आसा अलूधो रे आज वले करम बांध भारी हुबो, इणरो श्रमण भगवंत महावीर जी, अ ले अतिसय गुणकर दोपता त्या गोसाले को थो जिम करघो, त्यां ते जथातथ किणविध करें, जे हिवै दूजी बार महिमा करें, ते मत यो हावा पगारी सोंदरी, वले किया सुरभीगंध पाणी करो, न्हवरायो पहिला को गोसाले तिम करचो कीधा सगला बोल संभाल ।। १६ ।। मोटी रिच सतकार सूं काठो नगरी रे बार न सर्यो आतम काज || १२ || निश्चे देवातदेव । इंद्र करें सेव ।। १३ ।। नगरी ने आलंक । भारीकरमां बंक ।। १४ ।। राखण तिणवार । उघाड़ा दुवार ||१५|| तिण काल । , तिरा किया महोछव अति घणां सुतर में घणों विसतार ||१७|| 1 ४१८ भगवती जोड़ निज काल कितोएक बीतां सावत्थी नगरी थी नीकले तिण काले ने तिण समे, सोण कोठ नामे बाग थो ईसाण कूण रे मांहि ॥ २ ॥ तिण साण कोठ नामा बागथी, नेड़ो मालुआ कच्छ थो एक । ते पान फूल फलां की सोभतो, तिथ में रूड़ा विरख अनेक ||३| तिण मेढीगाम नगर मांहे वसं, रेवती गाथापतणी नाम । कोइ धन कर गंज सकै नहीं, रिध प्रभूत छै ठाम ठाम ||४|| 3 Jain Education International वहा पर्छ, भगवंत कियो विहार । चाल्या जनपद देस मझार ॥१॥ मेढीगाम नगर यो ताहि " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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