Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 437
________________ ढाल : २६ [हंस हंस बांध करम अथवा आछे लाल] तिहां भगवंत श्री महावीर, विचरत साहस धीर । आछे लाल। मेढ़ीगाम पधारिया ॥१॥ मेढीगाम नगर रे बार, साण कोठ बाग मझार । तिण बाग में वीर समोसरया ॥२॥ साथे मोटा-मोटा अणगार, वले सिष्यां रो बह पिरवार । मोटे मंडाणे वीर आविया ॥३॥ तिहां आया लोक अनेक, कीधी सेवा भगत वशेख । जिण दिस आया तिण दिसे गया ।।४।। तिण अवसर श्री महावीर, त्यारै आतंक रोग सरीर। वेदन वेदै अति आकरी ॥५॥ ते वेदन जाजलमान, कायर कंप सुण कान । • ते अहियासतां अति दोहिली ।।६।। पितंजर परगट्यो सरीर, समे परिणामे खमै महावीर । दाह उपनों सर्व सरीर में ॥७॥ लोहीठाण हवो तिण काल, ते वेदना अति विकराल । वीर वाणी अटके गई ॥८॥ च्यारूं वर्ण रै माहोमांही आम, लोक बात करै छै ठाम-ठाम । भगवंत नै करड़ो रोग ऊपनों ।।६।। वीर नै गोसाला रे संवाद, हवो कोठग बाग में विवाद । ___ जब तेजू लेस्या मेली वीर – ।।१०।। तिण लेस्या रो लागो ताप, ते रह्यो सरीर में व्याप। ____ जब वीर वाणी अटकी तेह सूं ॥११॥ छ मास तणे अंत जोय, जब रोग पितंजर होय । दाह उपजसी सर्व सरीर में ।।१२।। छदमस्थ थको करसी काल, इम कह्यो थो जद गोसाल । ए बात मिलती दीस तेहनीं।।१३।। वीर कह्यो जद मूओ गोसाल, तिणरो तो आयो निकाल । ते पिण वचन नहीं विगटियो ॥१४॥ दूहा तिण काले में तिण समे, भगवंत नों सिष सुवनीत । सीहो नामे अणगार थो, तिण में साध तणी सुध रीत ॥१॥ बेले-बेले निरंतर तप करै, सूर्य साह्मो लेवे आताप। मालुआ कच्छ री पाखती, दोन हाथां नैं ऊंचा थाप ॥२॥ गोसाला री चोपई, ढा. २६ ४१९ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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