Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 447
________________ दूजी वार साधु ने देख ए, वले राय ने जागसी धख ए । वले कोप चढ़ी तिन बार ए ले रथ फरसी सिर महार ए ॥६॥ वले सुमंगल नामे अणगार ए. वसे हलवे हलवे तिथ वार ए पाछो कभी होसी विण ठाम ए पर्छ अवधि प्रजूजसी ताम ए ॥ ७॥ अवधि प्रभूंजी तिवार ए, गया काल से करसी विचार ए । इसे पाछिलो भय लेसी जाण ए, इसने बोलसी एवी वाण ए ||८|| राजा नां गुण नहीं तो मांहि ए, विमलवाहण राजा तूं नाहि ए। तूं निश्वं नहीं देवसेन राय ए, भूडा लपण दीसे तो मांय ए ॥ ९ ॥ तू नहीं महापदम राजान एतं करें गुमान ए आज थी तीजा भव मांहि ए, गोसालों मंखली- पूत ताहि ए ॥ १० ॥ साधां री घात कीधी थे बाल ए, छदमस्थ थके कियो काल ए । अजे उन्हीज यांरो ध्यान ए. तिण सूं से नहीं निश्वं राजान ए ॥११॥ जद थे कधी साधा से घात ए, ते पिण समर्थ हुंता विख्यात ए । बाले जाले भसम करे तोय ए. पिणयां क्रोध न कीधो कोय ए॥ १२ ॥ समे परिणामे सह्यो जाण ए, खिमता कीधी सुमता आण ए । सर्वाणभूति सुखसाध ए. मूआ धीजिण धर्म अगध ए ।।१३।। तिम भगवत श्री महावीर ए ते पि रह्या साहस धीर ए । विमासूराजे अरिहंत एपिपिमा कोधी मतए ||१४|| पण त्यां जियो छ नांहि ए, खिमता रम नहीं मो मोहि ए। तो घोड़ा ने रथ सारथी समेत ए, बाले जाने भसम करूं एथ ए ।। १५ ।। ए साधु रा वचन सुणे कान ए, घणों को चढ़सी राजान ए । सुमंगल नामे अणगार ए. त्यांने मारण तोजी वार होसी बले तयार ए, रथ फेरण सिर मभार ए । तीजी वार रथ आवतो देख ए, साध ने जागसी धख वशेख ए ।।१७।। साधु होसी धिगधिगायमान ए. घणों कोप चढसी असमान ए । री मन धार ए ।। १६ ।। समुदघात करसी तिण काल ए तेज था उसी ततकाल ए ।। १६ ।। राय घोड़ा रथ सारथी समेत ए, बाल जाल भसम करसी तेथ ए । साधु ने संतापसी जाण ए, तिए रे तुरंत फल लागसी आण ए ।। १६ ।। ते तो वानगी मातर जाण ए, आगे दुख अनंत पिछाण ए । खासी नरकादिक में मार ए, तिण रो छं घणों विसतार ए ||२०|| गोतमसामी पूछा करी आम ए, साधु उपजसी किण ठाम ए ? वीर कहे सुमंगल साध ए घोर तप करे पासी समाध ए ।। २१ ।। घणां वरसां से चारित पाल ए, काटसी करमा तप करसी विचित्र परकार ए. एक मास तणों आलोए पटिकमेध याय ए उपजसी स्वार्थसि तिगरी आज सागर तेतीस ए. गोतम ने कह्य जगदीस ए ।।२३।। ओ चवने जासी केत ए, वीर कहै महाविदेह खेत ए । राजाल ए । संवार ए ।। २२ ।। मां ए उठे करे करमों रो सोख ए. तिहां थी जासी पाध मोत्र ए ||२४|| Jain Education International 0 For Private & Personal Use Only गोस ल री चौपई, ढा० ३४ ४२९ www.jainelibrary.org

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