Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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सुध साधां नैं दुख देतां थकां, बांधिया करम अथाय । ते छुट नहीं विण भोगव्यां, ते सुणज्यो चित ल्याय ।।१।। विमलवाहण राजा पापियो, ते होय जासी जीतब रहीत । तिणनै साधु बाले भसम कियो, घोड़ा रथ सारथी सहीत ।।२।। विमलवाहण राजा तणी, पूछा कीधी गोतम साम । आउखो पूरे करे, जासी कुणसे ठाम ?।।३।। वीर कहै सुण गोयमा ! विमलवाहण राजान । ते मरने जासी नरक सातमी, तिहां महा दुखां री खान ।।४।। तिहां आउखो सागर तेतीस नों, खेत्र वेदना अनंती जाण। तिहां दुख माहे दुख होसी घणों, उठे कुण छुड़ावै आण ।।५।।
ढाल: ३५
[साधु जी नगरी आया सदा भला] सातमी नरक थकी ते नीकली रे, मछपणे उपजसी आण। तिहां पिण सस्त्र सं घात पामसी रे, बलू-बलू करतो छोड़े प्राण ।
करम थी न छूटे रे कोई विन भोगव्यां रे ।।१।। आं० तिहां थी मरने जासी वले सातमी रे, तिहां उत्कष्टी थित जाण। वले सातमी नरक थकी ते नीकली रे, बीजी वार होसी मछ आण ।।२।। तिहां पिण सस्त्र सं घात पामसी रे, बल-बलं करतो पाडै चीस । तिहां थी मरने जासी छठी नरक में रे, तिहां आउखो सागर बावीस ॥३॥ छठी नरक तणो नीकल्यो थको रे, अस्त्रीपणे उपजसी आय।। तिहां पिण घात पामसी आगली विध रे पड़सी छठी नरक में जाय ।।४।। वले अस्त्री होसी छठी रो नीकल्यो रे, तिण हीज विध पामसी घात । तिहां थी मरने जासी नरक पांचमी रे, तिहां पिण सूख नहीं तिलमात ।।५।। पांचमी नरक तणो नीकल्यो थको रे, सर्प होय नैं पांचमी जाय। पांचमी रो नीकल्यो वले सर्प होय नै रे, चोथी नरक में जासी ताय ॥६।। ते सींह होसी चोथी थी नीकली रे, बले परसी चोथी में जाय। वले सींह थई जासी तीजी नरक में रे, तिहां थी नीकल पंखी थाय ।।७।। पंखो मर जासी तीजी नरक में रे, तिहां थी नीकल पंखी फेर थाय । ते पंखी मर जासी बीजी नरक में रे, तिहां थी नीकल सिरीसव होसी ताय॥८॥ ते सिरीसव मरने जासी बीजी नरक में रे,तिहां थी निकल सिरोसब फेर थाय । ते सिरीसव मरने जासी पेहली नरक में रे, तिहां थी नीकल सनी में जाय ।।६।। ते सनी मरने असनी होय नै रे, बले पेहले नरक में जाय । एकण पल रो भाग असंख्यातमो रे, एहवो आउखो पाय ॥१०॥ शेष आउखो सगलेई नरक में रे, उतकष्टो पामसी तेह। सस्त्र घात सगलेई पामसी रे, बलू-बलू करतो मरसी एह ॥११।।
४३० भगवती जोड़
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