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गोसाला रो जीव सातोंई नरक में रे, जासी दाय-दाय बार । एकसौ नै पच्यासी सागर जाझी थकी रे, इतरी खासी नरक में मार ।।१२।। साधां री घात कीधी थी पापिये रे, वले कीधी मिथ्यात री थाप । उसभ करम उपाया तिण समै रे, ते भोगवसी इणविध पाप ।।१३।। पापरी गुद सं गुद बधसी घणी रे, भंडा लारे भंडोइज होय । इम सांभल नै थे भवियण जीवडां रे, किणरो भूडो म कीजो कोय ।।१४।। सातोंई नरक माहे दुख भोगव्या रे, तोही नांवे करमा रो अंत । शेष करम रह्या ते किणविध भोगवे रे, ते सूणजो मतवंत ।।१५।।
दुख भोगवतां सात नरक में, तिहां होसी घणोंइज हेरान । गोसाले संचो कियो थो जिण दिने, तिण पाप री उघड़सो खान ।।१।।
हाल:३६
[कर्म भुगत्यां इज छूटिये] पेहली नरक थी निकली, जासी पंखी तणी जात माय लाल रे। त्यांरा तो भेद अनेक छ, ते पूरा केम कहवाय लाल रे ।
करम भुगत्यां इज छूटिये ॥१॥ आं० चम पखी ने लोम पंखिया, समूग पंखो विततादिक पंखी मांहि लाल रे। लाखां गमे करसी भव तेहमें, वारंवार उपजसो ताहि लाल रे ॥२॥ सगले सस्त्र स घात पामसी, बल-बल करतो करसी काल लाल रे। तिहां दुख भोगवसी आंत घणां, वेगी-वेगी लागसी झालोझाल लाल रे ॥३॥ पहचर पंखी मांहि थी नीकली, भजपर री जात में जाय लाल रे । त्यांरा पिण भेद अनेक छे, ते पूरा केम कहवाय लाल रे ।।४।। गोह नोलियादिक तेहमें, करसी लाखां गमे भव ताम लाल रे। ते पिण पहचरनी परे जाणजो, मर-मर उपजसी तिण ठाम लाल रे ॥५॥ त्यां सं नीकल जासी उरपर मझे, त्यांरी पिण जात व शेख लाल रे । अडी अजगर ने असलिया आली, महोरगादिक भेद अनेक लाल रे ॥६॥ लाखां गमे करसी भव तेह में, मर-मर उपजसी वार-वार लाल रे। तिहां पिण दुख भोगसी घणां, षहचर जिम विसतार लाल रे॥ ते भजधर मांस नीकली, पछ जामा थननर मझार लाल रे। तिहां भव करसी लाखां गमे, मर-मर उपजमी वारंवार लाल रे ।।८।। एगखरा दुखरा गंडापया, सणपया ल च उपद पिछाण लाल रे। त्यांग नाम जात अनेक छ, त पिण पहचर नी पर जाण लाल रे ।।।।
गोसाला री चौपई, ढा० ३५,३६ ४३१
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