Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 451
________________ तिण ने माता-पिता परणाबसी रे भरतार से करसो केल| इष्ट कंत होसी भरतार ने रे, तिहां सुख र संजोग समेल रे ॥७॥ ते गर्भवती होसी एकदा रे, ते रहितां सासरा मांय ते सुसरानो घर थकी रे, आवती कुलपर मांय मारग दव लागो तिहां रे, तिण ज्वाला करी पराभव पामी अति घणों रे, दग्ध हुई तसु देह अगन महि बसी थकी रे, काल करेसी ताय । रे ॥८॥ देवपण उपजसी जाय रे ।। १० ।। पामी नर अवतार। लेसी संजम भार रे ।। ११ ।। । दिखण दिसे अगनकुमार में रे, ते अग्निकुमार थी नीकली रे, त्यां समगत बोध पामन रे, बले चारित्र विराध आपरो रे, काल करसी तिण ठाम | दिखण दिशि रा असुरकुमार में रे, देवपणें उपजसी ताम ।।१२। वले मिनख वै चारित विराध नं रे, देवता होसी नागकुमार । अगनकुमार वरजी दियो रे जान देवता वणियकुमार रे ।।१३। नव वार चारित विराध नैं रे, देवता होसी नवूई वार | असुरकुमार आदि दे रे, इम नई लीजो विचार रे ।। १४ ।। पणियकुमार थी नीकली रे वले मिनख वणो भव पाय । चारित विराधी तिहां थकी रे, ज्योतिषी देवता होसी जाय रे ।। १५ ।। तेह | चूहा सुख भोगवे जोषियां तणां बले पामसी नर अवतार | वले वाणी सुण साधां तणी, लेसी संजम भार ॥१॥ ढाल : ३८ Jain Education International रे ॥ ६ ॥ [जाणपणो जग दोहिलो ] तिहां साधरण सुध पालसी रे लाल, आश्रव नाला रोक सुविचारी रे। करसी चारित आराधना रे लाल, जासी पेहले देवलोक सुविचारो रे । गोसालो जिण धर्म आराधसी रे लाल ||१|| आं० For Private & Personal Use Only गोसाला से चौपई ४० ३७,३८ ४३३ www.jainelibrary.org

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