Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 446
________________ ते भलो नहीं है थाने वले भलो नहीं थे महांने हो । वले राज देस ने भंडार, भलो नहीं है किणने ई विगार हो ॥४॥ किणही माध री म करो पात मी पहिजो त्यांस मिथ्यात हो। दुख पिण मती देवो लिगार, आ अरज करां वारूंबार हो ||५|| इम सांभल लोकां री वाय, विमलवाहण नामे राय हो । धर्म तप नहीं जायो बिगार, लोटा मन से कियो अंगीकार हो ॥६॥ पण लोकां कही वे बात, मंढे तो मान लोधी साख्यात हो । पण अंतरंग मांहे उवाहीज रीत, तिरै साध मारण री नीत हो ||७|| दिन काढसी इण परिणाम, साध ने दुख देवा री हाम हो । हि किविध साधु ने सतावे, किणविध कीधा रा फल पावै हो || ८|| दूहा तिथ काले ने विण समे, विमलवाहण अरिहंत । त्यारो परपोतो सिष्य दीपतो, सुमंगल साध महंत ||१|| त्यांरी जात माता री निरमली, कुल पिता से निरदोष । त्यांरा गुण रो छेह आये नहीं, गुण जाणों जिम धर्मघोष ||२|| तेज लेख्या होसी त्वामें दीपती तीन ग्यान करे में सहीत । बेले बेले निरंतर तप करें, आतापना लेवे रूडी रीत ॥३ ॥ सवदुवार नगर र ईसाण कृण में ताम सुभूमभाग उद्यान उतरसी तिण बाहिरे में, आय ठाम ॥४॥ [ जाणं छं राय तूं बात ए ] जद विमलवाण नामे राय ए, एकदा बेसी रथ मांय ए रथकीला करण ने काम ए. नगर बारै जासी तिण ठाम ए ॥ १ ॥ ढाल : ३४ सुभूमभाग उद्यान रे पास ए, रथकीला करतो आसी तास ए । तिहां सुमंगल नामे अणगार ए, आतापना लेसी तिणवार ए ||२॥ तिथ साधु नैं राजा देख ए, तब जागसी राजा नें धेख ए । 'आसुरले मिस मिसायमान ए, बसे कोप चहसी असमान ए || श ऊभा सुमंगल नामे अणगार ए. रथ से हेठा न्हावसी तिणवार ए रथ फेरसी सिर ऊपर ताम ए, राय नां होसी दुष्ट परिणाम ए ||४|| वले सुमंगल नामे अणगार ए हलवे हलवे तिण बार ए पाछो ऊभो होसी तिण ठाम ए, वले लेसी आतापना ताम ए ||५|| ४२८ भगवती-जोड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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