Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 445
________________ एक-एक ने बंधण बांधसी ताम, एक-एक नें रूंध राखेसी एक ठाम । एक-एक री करसी चामड़ी नी छेद, एक-एक ने मारे गमासी विछेद ||२|| एक-एक ने मैं उपद्रव उपजाय, ते करतो संक न आण कांय । एक-एक रा वस्त्र छेदै ताम, पडिग्गह कंबल पायपूंछणो आम ||३|| एक-एक रा उपध विशेषे छेदै, एक-एक रा उपध विशेष भेदे । एक-एक साधु रा उपधि ने पोरे, एक-एक रा उपधि ने फाड़े तोड़े || ४ || एक-एक से विच्छेद करसी भात पाणी, एक-एक नै निगन करसी जाण जाणी । एक-एक नै निप्रष्ट करसो जाण जाण, एक-एक नैं दुख देसी ताण-ताण ||५|| इत्यादिक साधां रो हुसी दुखदाई, दुख देतो संक न राखे कांई । साधां रो हुसो वले अंतरंग वेरी, इसड़ो विमलवाहन राजा गेरी || ६ || जे कोर साध-सतो ने सतावे ते जीव सुख कहां थी पावे। ते राय साधां ने दुख देसो जाण, तिणरे किण-विध पाप उदे हुवे आण ||७|| दूहा हिदे सवार नगर नेमके लोक कहै मांहोमांही आम । राजा ईसर जुगराजादिक बहु, घणां बात करेमी ठाम ठाम ||१|| विमलवाहन राजा हि साधु तूं पड़वजियो मिथ्यात । त्यांने विविध दुखदं पणों ति बिगड़ी दो छेदात ॥ २ ॥ सूं ते भलो नहीं आपां भणो, राजा ने पिण भलो नांय । राज देस बल वाहन भणी, ते निश्चै भलो नहीं कांय ॥३॥ पुर अंतेवर ने भलो नहीं, नहीं कि रे सुख तिलमात । विमलवाहन राजा साधां थकी, पड़वजियो मिथ्यात ||४|| तो श्रेय किलाण छँ आपां भणी, राजा सूं अरज करां जाय । ए माहोमा मिलि बातां करी ते सगला १ आसीदाय ||५|| ढाल : ३३ [मल मेवासी] सगलाई मतो कर हाल्या, आसी राय कनै आय ऊभा रहसी राजा रे पास, हाथ जोड़ी विनों करसी तास हो ॥ १ ॥ 'सहु चाल्या हो । राजद बड़भागी || १॥ अ० जय-विजय करेने बघासो बले विरदावलियां बोवासी हो। तिहां बोलावसो मीठी वाणी, एक अरज करां म्हे जाणी हो ||२|| ये साधा पडिवजियो मिथ्यात ते आछी नहीं थे बात हो। एक-एक में आकोसो तास, सगली मांड कही राय पास हो ।। ३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only गोसाला री चोपई, ढा० ३२, ३३ ४२७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460