Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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जब मांड कहो जगनाथ, गोसाला री बात।
आज हो आलोवण कीधी ते मगली कही।॥३०॥ जद चोखी समकत पाय, तिहां पून रा थाट उपजाय ।
आज हो तिण सं बारमें सूर हवो देवता जी ।।३१।। गोतम पूछे जोड़ी हाथ, उठ आउखो कितो सामीनाथ !
आज हो बारमें देवलोके तिण देवता तणों जी ।।३२।। इणरो आऊ सागर बावीस, ते भाख्यो श्री जगदीस ।
देव तणां सुख भोगवसी तिहां जी ॥३३।।
देव आउखो पूरी करे, चव उपजसी किहां जाय ? जब वीर कहै सुण गोयमा ! सुण तू चित्त लगाय ॥१॥
ढाल : ३१
[नमिराय धिन-धिन तूं अणगार]
जोहो जबंद्वीप नां भरत में, पंड जनपद देम मझार । जोहो सयदुवार नामे नगर हुँतो, तिहां भरिया रिध भंडार ।
चतुर नर जोवो करम विपाक ॥१॥। आं० जोहो तिण सयदुवार नगरी अधिपति, सुमति नामे गजान। जीहो भद्रा राणी तिण राय ने. ते डाही चतुर सुजान ।।२।। जीहो बारमा देवलोक थी चवी, ते तो छोड़सी तेह ठिकाण । जीहो भद्रा राणी री कुख में, पत्रपणे उपजसी आण ।।३।। जीहो सवा नव मास पूरा हआं, जनम होसी तिण काल । जीहो सुंदर रूप सुहामणों, वले भरीर घणों सुकमाल ॥४॥ जीहो जनम होसी तिण रात नों, जद नगरी माहे नै बार। जीहो पदम रतनां तणी विरखा हुसी, उसरा पुन ले जासी लार ॥५॥ जीहो बार में दिन न्यात जीमावियां, त्यां ने मात-पिता कहसी आम । जोहो म्हार पुत्र हुवो छै तेहनों, म्है तो गुणनिपन देसां नाम ॥६॥ जीहो म्हारै पुत्र जनमो तिण रात नों, नगरी माहे बारै टाम-ठाम। जीहो पदम रतन तणीं विरखा हुई, महापदमकुमर इण रो नाम ॥७॥ जीहो आठ बरस जाझेरो हुसी, वले डाहो चतुर सुजाण । जीहो मात-पिता इणनैं हरष सूं, राज देसी मोटे मंडाण ।।८।। जोहो ओ महापदम राजा होसी, मोटो हेमवंत ज्यं जाण । जोहो गाम नगर सर्व देस में, सगल वरतसी इणरी आण ||६||
गोसाला री चौपई, डा. ३०,३१ ४२५
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