Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 440
________________ दूहा दम सांभल में सीहो मन हरथियो, बले पायो अतंत संतोष । तो हि जाय सताब सूं. हिवे भगवंत ने वंदना करे, आयो जिहां रेवती नों घर छ तिहां, परवेस रेवती देख्यो सीहो मुनि आसण छोड़े ऊभी थई पाक ल्याऊं निरदोष ॥ १ ॥ मेढीगाम में ताहि कियो तिन मांहि ||२|| ढाल : २९ [वीर बखाणी राणी चेलणा जी ] आयतो जी हरषत हुई मन मांय । जी, सात आठ पग साझी आय । Jain Education International तीन प्रदिपणा दे करी जी, पांचूई अंग नमाय ने जी. आज म्हारी रं जागी दसा जी, पूगी आज भलो भाग उगियो जी भाग आज करतारथ हूं गई जी, मुनिवर ज्यां पुरुष तण चावना जी त्यांरो म्हे तो दीठो दीदार ॥४॥ किण प्रयोजन आप पधारिया जी, ते कहि ने बतावो जो मोय । साधजी भलाई पधारिया जी ॥१॥ आं० वांदे छे बा जी वार । बारूं मन मांहे हरष अपार ॥२॥ म्हांरा मन तणीं कोड । कियो म्हारे आया म्हार जोर ॥३॥ वार । 7 ॥७॥ जब सीहो कहै रेवती भणी जी. एक ओषध आप तूं मोय || ५ || कोल्हापक थे वीर अर्थ कियो जी ते लेगो कल्पे नहीं मोम | बीजोरापाक तुम अयें कियो जी, ते बेहराम निरदोष जोय ||६|| कुण ग्यानी हो यारे एहवा जी त्यां कही म्हांरी छानी जी बात। थे परगट कही मो आगले जी, ते उत्तर दो सामीनाथ ! ||७|| वीर जिणंद चोबीसमा जी, त्यांसूं छानी नहीं कोई बात । ते लोक अलोक जाणं सर्वथा जी त्यांरा कह्यां सं जाणं साख्यात ॥ ८ ॥ ए वचन सीहा तणों सांभली जी, रेवती हरषत थाय । तिण दान दियो सीहा अणगार नै जी, मन रलियायत थाय ॥६॥ दरब दातार दोनूं सुध था जी, तीजो पातर सुध जाण । वसुध तीन करण तीन जोग सूं, इणरै इसड़ी जोगवाई मिली आण ॥ १० ॥ तिण ओषध बेहरायो अति भाव से जी, बले उछरंग पाम्पो तिन वार । तिहां देव आउसो तिण बांधियो जी, वले कीधो परत संसार ।। ११।। तिहां सुगंध पाणी देव वरसावियो जी वले वूठा पांच वर्ष जी फूल । वले विरखा करी सोवन तणीं जी, बूठा वले वसतर अमूल ।।१२।। देव बजावं देव-दुदभी जी, आकास र अंतर ठाम । मोटे सब्दे घोष पाड़ियो जी, दान रा धिन धिन करें देवता जी, धिन धिन रेवती गाथापतणी ने कहै जी, इण सफल ४२२ भगवती जोड़ किया करे कियो गुणग्राम || १३ || नर-नार । अवतार ॥ १४ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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