Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
ढाल : १९
[आ अणुकंपा जिम आमन्या में]
भगवंते गोसाला नैं चेलो कोधो, ते अखोणरागपणे कियो जाणों । इणरा परिचा थकी स्नेह थो इणथी, मोह अणुकंपा सभाव पिछाणों।
निश्चै होणहार टलै नहीं टाल्यो॥१॥ छदमस्थपणां थी इसड़ी मन आई, वले अवस भावी भाव टालणी नावै । जे निश्चै भाव केवलियां देख्या, ते आगा पाछा कहो किण विध थावै ॥२।। तीर्थकर छदमस्थ उपदेश न देव, सिषणी पिण न करै तिण कालो। अवस भावी भाव टालणी नावै, जब कियो भगवते चेलो गोसालो ॥३॥ जो धुर सं इणनै वीर चेलो न करता, तो इसड़ा उदंगल क्यांनै थावै ।। तिण समोसरण में आय उपसर्ग कीधो, इण विनां अछेरो कुण उपजावै ॥४॥ एक तिल देखनै पूछा कीधी गोसाले, निल नीपजसी वीर कह्यो विरतंत । जब वीर नै झठा घालण गोसाले, तिल उखाण नैं न्हाख दियो एकंत ॥५॥ आगा जायने पाछा आया तिण ठामे, गोसाले कह्यो तिल नीपनों नाही। जब वीर कह्यो तिल निश्चै नोपनों, फूल रा जीव ऊपना संगली मांही ॥६॥ थेट सूं बात मांडी कही सर्व तिल री, जिण विध जीवां कीया पोटपरिहारो। इम सांभल नैं इण उधो विचारयो, पोटपरिहार करै छै सर्व संसारो ॥७॥ इण ऊंधी अकल सं ऊंधी विचारै, पछै वीर से अलगो पड़ियो गोसालो। सातमों पोटपरिहार आपरो थाप्यो, सनमुख वीरसं झगड़यो तिण कालो ॥८॥ जब गोसाला ने साधा झूठो घाल्यो, जब गोसालो कोप चढयो ततकालो। जब भगवंत ने तिण उपसर्ग कीधो, वले दोय साधां ने दीधा बालो ।।६।। जो गोसाला नैं तिल बतावत नाहि, तो पोटपरिहार ओ क्याने बतावै। इणने पिण साधु झूठो न कहिता, तो उपसर्ग अछेरो किणविध थावै ॥१०॥ वले गोसाला नै वीर सीखाई, तेज लेस्था नीपजै इण भाँत । तिण लेस्या उपजाई सावध सेवै, तिणरै मिनख मारण री मन माहे खांत ॥११॥ तिण लेस्या सं कीधा अनेक अकार्य, मत बांधे फेलायो लोकां में मिथ्यातो। वले लोहीटाण भगवंत कीधो, वले दोय साधां री कीधो घातो ॥१२॥ जो गोसाला में लेस्या वीर नहिं सिखावत, तो उपसर्ग किणविध करतो आय। जो उपसर्ग नहीं करतो गोसालो, जब एक अछेरो घटतो थाय ॥१३॥ ओ पिण निश्चै होनहार छ, तिणसं गोसाला मैं लेस्या वीर सीखाई। औ पिण भाव दीठा जिम हुवा, तिण मांहे संक म आणों काई ।।१४।। फोडवी लबद अणुकंपा आणे, गोसाला – वीर बचायो । छ लेस्या नैं छदमस्थ हुंता, मोह करम वस रागज आयो ॥१५॥ मोह करम उदै अवस आयो ते, टालण समर्थ नहीं जगनाथ । वले अवस गोसालो अछेरो करसी, जद किणविध पामै गोसालो घात ।।१६।। अछरा दस देख्या अनंता अरिहंता, ते न घटै उपाय करै जो अनेक । जद गोसाला नै वीर नहीं बचावै, तो दसां अछेरां में घट जाऔ एक ॥१७॥ साधां मैं तो लब्द फोरवणी नाही, जोवो सूतर भगवती माय । पिण अवस भाव निश्च होनहारो, तिण मांहे संक म राखो काय ॥१८।।
४०८ भगवती-जोड़
Jain Education Intemational
cation International
For Private & Personal Use Only
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460