Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 430
________________ । | रूप रच्यो है साधु न वा गुण नहीं मूल लिगार जाणै जुगां रो जूनो जती, बणियो सासण रो सिणगार ||५|| गोसाले लोक धूतवा माटै, साधु रूप रच्यो अद्भुत । मुंडे बांधी मुंहपती, ओषो लियो बिना करतूत ॥ ६ ॥ नहीं उठाण कम बल नै वीर्य, पुरषाकार प्राकम नहीं ताय । ए पांचां रो कारण को नहीं, होसी होणहार ते हो जाय ||७|| करणी से कारण को नहीं छे होणहार तिम होय । एहवी ऊंधी करे परूपणा, पणां लोकों ने दीघा डबोय ||६|| सीतल पाणी पीधा से मोखन अटके अस्वी सेव्यां न अटक मोस । बीज हरीकाय भोगव्यां, त्यांमें पिण न बतावै दोष ॥६॥ छेहलो तीर्थंकर बाजे लोकां में, तिणसूं हुवो घणों मगरूर । पण अतिशय गुण एको नहीं, यूं ही थोथो चलायो फितूर ||१०|| आठ चरम तिण बेहला परूप्या ते पिण झूठ एकत महाकल्प से मन सूं उठाय में तिणरा झूठ से बोहत विरतंत ।। ११।। आप तो जाबक गुण विन थोथो, बोथो सहु पिरवार पलाल ज्यूं पुंज दीसे घणों, मांहे कण नहीं मूल लिगार || १२ || इरे सरधा माहे अतंत अंधारी, आचार में नहीं ठिकाण । भारीकरमा हुता ते जीवड़ा, पड़िया खोटा मत में आण ।। १३ ।। जिण काले जिण केवली हुंता, कहिता मनोगत बात । भारीकरमां रे गोसाला तणों, मिटियो नहीं मूल मिध्यात ।। १४ ।। वले वज्र पापनें ढांकवा काजे, पाणी परूपै च्यार । वले अपाणी प्यार परूपिया, त्यांसे करें घणों विसतार ।। १५ ।। एक तो पाणी परूपं पाल रो, बीजो पाणी छाल से जाण । तीजो पाणी फला तणों, चोयो सुध पाणी पिछाण ।। १६ ।। छ मास लगे मुध खादिम भोगवे तिण में दोष मास पुढवी संचार । काष्ठ संथारो दोय मास नों, दोय मास नों डाभ मकार ।। १७ ।। तिण नैं छ मासे नीं छेहली राते, दोय देव आवें तिण पास । पूर्णभद्र माणभद्र तेहनीं सेवा करे आण हुलास ।। १८ ।। सीतल अगोंचो लेई लेई हाथ में, हाथ में यात्र गात्र लूहे आय । तिने भलो जाणे तो तेह में आसीविस करम करे ताय ।। १६ ।। जो ऊ भलो न जाणे तेहनें, तो अगन सरीर में पाय । तिण अगन सू सरीर प्रजलै घणों बलूं-बलू करें ताय ।। २० ।। इतरी रीत "कियो पर्छ, ओ तो जाने मोख मभार । इणविध सुध पाणी विस्तार ||२१|| 1 ४१२ भगवती जोह Jain Education International तणो, कहै तो कहे घण घणों दूहा एहवी अंधी करे परूपणा, ते झूठ में झूठ अनेक । छै तिगरी धावक अयंपुल आवे विहां, ते सुणजो आणविवेक ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460