Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 432
________________ वो वचन बेबे वेलां उचरै रे लाल, उनमाद नो कारण जाप हो । तो पण श्रावकां रे संका पड़े नहीं रे लाल, ते पिणजाणं कारण निरवाणहो ।। १६ ।। ते श्रावक पिण मुख सूं इम कहै रे लाल, आ छेहलां तीर्थंकर नीं रीत हो । त्यांरी मत ढंकाणी मोह करम सूं रे लाल, तिण सूं गोसाला से पूरी परतीत हो ॥ २० ॥ वले प्रश्न अपुल पुछिया रे लाल, त्यांरा अर्थ सुर्ण हरवत याय हो । भ० । भाव सहित वंदना करे रे लाल, पछे आयो जिण दिस जाय हो ।। २१ ।। हा गोसालो मरण जाण्यो आपरो जब थिवरां ने कहै पूरण खांत । थे काल गयो जाणो मो भणी, म्हांरी महिमा कीजो इण भांत ॥ १ ॥ Jain Education International ढाल २३ [जंबूद्वीप मशार रे अथवा [र जोवन मांय रे देही निरोगी हवे ] सुरभी गंध पाणी आण रे मुझ, सरीर नै । रूड़ी रीत म्हबरावजो ए ॥ १ ॥ परमल अति सुखमाल रे, गंध कसाई ए । तिण करे सरीर नैं लूहजो ए ॥ २ ॥ गोसीस चंदण आण रे, सरस ततकाल नों । महामोटा जोग वशेष रे, सपेत ऊजलो । मुझ गातर लेप लगावजो ए ||३|| डांको मुझ सरीर रे, रूडी रीत हूं। अलंकार करो सर्व अंग रे, ज्यं रे, सरीर घणों सिणगार ४१४ भगवती-जोड़ इसडो कपड़ो आप ने ए ॥ ४ ॥ ज्यू दीसे अति सोभतो ए ॥ ५॥ विभुसत करो घणों । लागे अति रलियामणो ए ।। ६ ।। दीपक ज्यू दीपती । देखतां नयण ठरं ए ॥ ७ ॥ पुरुष उपाड़े सहंस रे, करजो हजारों रूप रे, सावत्थो नगरी रं मांहि रे, घणां पंथ भेला हुवै । तिहां कीजो उद्घोषणा ए ॥ १० ॥ एहवी सेवका । ते रूडी रीत बणायजो ए ||६|| सेवका मके । ते देखता लोचन ठरै ए ॥६॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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