Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 420
________________ आज हित नहीं हुवै तो भणी, थे मांड्यो छै मुझ थी विवाद । आज सुख म जाण तूं मो थकी, आज नहीं हुवै तुजनैं समाध ।।४।। थारा सिष सहीत आज तांहरी, बाल जाल भसम करूं राख। जब जाण लीजे तूं मो भणी, घणां लोकां री साख ।।५।। ढाल : १५ (धत्तूरो राचणो जी) हिवै सर्वाणुभूती अणगार, ते सिष्य भगवान रो जी। ते तो गुण-रतनां रो भंडार, दाता अभय दान रो जी। हिवै मान गोसाला! वचन, श्री भगवान रो जी॥१॥ आं० तिणरै धर्म रो राग अतंत, भगवंत रै ऊपरे जी। भद्रीक घणों मतवंत, विनै में रूड़ी परे जी ॥२॥ वीर नां अवगुण बोल्या अनेक, गोसाले आफूट नै जी। तिणरी बात न मानी एक, आयो तिहां ऊठनै जी ।।३।। आय ऊभो गोसाला रै तीर, समझावै तेहनै जी। एतो भगवंत श्री महावीर, दुहवै नहीं केहनें जी ॥४॥ औ तो तारण-तरण जिहाज, अतिसै ग्यान तेहमें जी। सहंस ने आठ लखण बिराज रहया त्यांरी देह में जी ॥५॥ तं काय दे तिणां नै आल, चोड़े झूठ बोल नै जी। हिवै मत बोले आल-पंपाल, अभितंर री खोल नै जी॥६॥ कोइ समण निग्रंथ रै पास, सीखै पद आण नै जी। त्यांने वांदै छ आण हुलास, साचा गुर जाण नै जी ॥७॥ तोनें तो दिख्या दे भगवान, मुंडण कियो तो भणी जी। बहसुरती कियो दे विगनान, अणुकंपा करी तो तणी जी॥८॥ तोस बोहत कियो उपगार, ते बीसारे घालनै जी। उलटी करवानै आयो बिगार, सनमुख चालने जी ॥६॥ इसडो नहीं बोलीजे झूठ, हं गोसालो नहीं जी। हूं तोने कहिवा आयो छु ऊठ, भगवंत साचा सही जी ॥१०॥ तं तो निश्चै गोसालो साख्यात, तिण में सांसो नहीं जी। थें पड़िवजियो मिथ्यात, भगवंत सं सही जी ॥११॥ इम सांभलने कोप्यो ततकाल, निलाड़ी सल चाढनै जी। इणरी राख करूं बाल जाल, तेज लेस्या काढने जी ।।१२।। तेज लेस्या काढे ततकाल, माठी मन आदरी जी। पापी राख कीधी बाल जाल, उत्तम मोटा साध री जी॥१३।। बले बोलै घणों विपरीत, आगा ज्यू भगवान ने जी। तिण साधु नै बाले बेरीत, चढयो अभिमान में जी ॥१४॥ ४०२ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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