Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 418
________________ चंपा नगरी नै बाहिरे, अंगमिंदर बाग में ताहि । तिहां मलराम नो सरीर छोड़नें, पेंठो मंडिया नां सरीर मांहि ||३१|| रह्यो मंडिय नां सरीर में हूं बीस वरस लग ताम । तीज पोटपरीहार है कियो, हिवै चोथो कहूं छू आम हो ||३२|| बाणारसी नगरी रे बाहिरे, काम महावन बाग में ताहि । मंडिय नो सरीर छोड़ नं. पैठो रोहा रा सरीर मांहि हो ।। ३३ ।। रह्यो रोहा नां सरीर में जी, उगणीस वरस मकार । इणविध कासप! म्हे कियो जी ओ चोयो पोटपरीहार हो ||३४|| आलंभिया नगरी नें बाहिरे, पतकालक बाग रे मांय । तिहां रोहा रो सरीर छोडने, पेंठो भारवाई रा सरीर में आय हो ।। ३५ ।। भारदाई नो सरीर में हूं रह्यो वरस अठार । इणविध कासव ! है कियो जी, पांचमों पोटपरीहार हो ||३६|| कठियायण उद्यान थो, ₹ बार । बेसाली नगरी भारदाई नो सरीर छांडनें, गयो उरजन सरीर मझार हो || ३७॥ सतरे वरस मभार । रह्यो उरजन रा सरीर में, इण रीते कासप! म्हे कियो छठी पोटपरीहार हो ॥ ३८ ॥ इण सावत्थी नगरी नें मझे, इण हलाहल कुंभारी री हाट । जब उरजन गोतम-पुत्र तेहनों, सरीर छोड्यो इण माट हो ।। ३६॥ तिहां गोसाला मंत्रली- पुत्र नों सेठो सरीर पड़ियो देख परिसा खमया समर्थ जाणियो, थिर संघयण तिणरो विशेष हो ॥ ४० ॥ उरजन से सरीर छोडने, पेठो गोसाला रा सरीर मकार सोलै पोटपरीहार ||४१ ।। वरस हुवा एहने, ए सातमों वरस में, कीधा सात पोटपरीहार । एक सौ तेतीस ते ग्यान नहीं सोने कासवा ! तूं बोल्यो विना विचार हो ||४२ ॥ वले गोसाली भगवंत नैं, बोलै ओलंभा जेम । भलो भलो को थे कासवा! हिये नहीं बोलीजे एम हो ||४३ ॥ इम गोसालो बोल्यो घणों विपरीत । भगवंत ने | बले झूठ बोले निसंक सूं छोड़ो जावक आगली पीत हो ॥४४॥ ४०० दूहा थे को गोसालो सिष्य मोहरो, ते हं सिष्य थांरो नांव । थे सरीर गोसाला रो देखने, भर्म भूलो तूं कांय ॥ १ ॥ ते सिष्य कह्यो छे मो भणी ते थोड़े चलायो झूठ ते झूठ थांरो म्है सांभले, हूं आयो ठिकाणा थी ऊठ ||२|| एहवा वचन गोसाले कह्यां थकां बोल्या श्री भगवान । दिष्टंत देई है तेह नें, ते सुणों सुरत दे कान || ३ || भगवती बोड Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460