Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 416
________________ दूहा अहो आउषावंत कासवा ! तू कहै लोकां रै माय । ओ गोसालो सिष्य मांहरो, ते प्रतक्ष मूसावाय ॥१।। थे आछो कह्यो आछो कह्यो, ते कह्यो ओलंभा रूप । हूं गोसालो सिष्य नहीं तांहरो, तूं सांभल तेह सरूप ॥२॥ गोसालो हुँतो सिष्य तांहरो, सूको भूखो तपकर ताय । ते आऊषो पूरो करी, देवपण उपनों जाय ॥३॥ हूं उदाई नामे राजान छू, कुंडीयाण गोत सधीर । उरजन गोतम-पुत्र तेहनों, छोड़े दोयो म्है छठो सरीर ॥४॥ गोसाला रो सरीर सेंठो घणों, ते म्है पड़ियो देखतिणवार। म्है परवेश कियो तिण सरीर में, ते सातमों पोटपरीहार॥५॥ ढाल: १३ [जगतगुर तिसलानंदन वीर] हिवै गोसालो कहै भगवंत नै, म्हारा भाष्या सार सिद्धत । सिझ्या सिझै सीझसी घणां, तिण में बोहत कह्यो विरतंत। हो कासप ! सुणजे म्हारो सिद्धत ॥१॥ चोरासी लाख महाकल्प हुवै, करै सात देव तणां अवतार । सात संजह सात सनीगर्भ करै, करै सात पोटपरीहार हो ॥२॥ पांच लाख ने साठ सहस ऊपरे, छसौ बले अधिका जाण । तीन करमां रा अंस खपाय नै, गया जाये जासी निरवाण हो ॥३।। एक दिष्टंत तोने साचो कहूं, ते सांभलजे चित ल्याय । एक मोटी गंगा लांबी घणी, तिणरो विवरो कहूं छु ताय हो ॥४॥ गंगा लांबी जोजन पांच सौ, अर्द्ध जोजन पेहली जाण । पांच सौ धनुष्य ऊंडी कही, ए गंगा नों परिमाण ।।५।। एहवी सात गंगा भेली कियां, एक महागंगा हुवै ताम। सात महागंगा तिण थी हुवै, एक सादीण गंगा आम हो ॥६॥ सात सादीण गंगा भेली कियां, एक मचू गंगा हुई जाण। सात मच गंगा भेली कियां, एक लोहिय गंगा बखाण हो ।।७।। सात लोहिय गंगा तिण थकी, आवती गंगा हवे एक । सात आवती गंगा तेहथी, एक परमावती गंगा वशेख हो।।८।। एक लाख सतरै सहंस ऊपरे, वले छसौ नै गुणचास । एक परमावती गंगा तणी, एतली गंगा हुवै तास हो।।। तेहनां दोय उधार परूपिया, ते सुण तूं राखे चित ठाम । सुषम बोंदी कलेवर नै वले, बादर बोंदी कलेवर ताम हो ॥१०॥ ३९८ भगवती-जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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