Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 423
________________ ढाल : १७ [आसण रा ए जोगी अथवा वेदक जग ए देखी] केइ लोक मिथ्याती त्यांमें नहीं ग्यांन, वले पूरो नहीं विगनान रे। ___ समझ नर विरला । आज दोय तीर्थकर रै झगड़ो लागो, तेतो सावन्थी नगरी रै बागो रे । समझू नर विरला ॥१॥ आं० ए दोनं माहोमां विवाद में बोल, एक-एक रा पड़दा खोलै रे। वीर तो कहै तूं म्हारो चेलो गोसालो, मोसू मत कर झूठी झखालो रे ॥२॥ गोसालो कहै हूँ थारो चेलो नाहि, थे कूड़ी कथी लोकां मांहि रे । म्है तो साधपणो थां आगे न लीधो, म्है तो गुर थान कदेय न कीधो रे॥३॥ वीर कहै गोसालो तीर्थकर नांहि, तीर्थंकर नां गुण छै मो मांहि रे । गोसालो कहै हं तीर्थंकर सूरो, ओ तो कासप प्रतख कूड़ो रे ।।४।। वीर नैं सनमुख चोड़े बोल्यो गोसालो, तूं तो मो पेहली करसी कालो रे । जब वीर कह्यो तूं सुण रे गोसाला! तूं करसी मो पेहली कालो रे ॥५॥ आप-आप तणों मत दोनई थापे, एक-एक नैं मांहोमां उथाप रे। यांमें कुण साचो कुण मुसावाई, केइ कहै म्हांनै खबर न काई रे ।।६।। यांमें केई कहै गोसालो जी साचो, इणनै किणविध जाणो काचो रे। यांमें तो उघाड़ी दीसै करामात, तुरत कीधी साधां री घातो रे ॥७॥ इण देखनां बाल्या दोय इणरा चेला, इणसं न हुआ पाछा हेला रे। इणनै खोटो कहितो जब बोलतो सेंठों, पछै अणबोल्यो कांय बैठो रे ॥८॥ गोसालो बोल ते गूंजार करतो, वीर पाछो बोल्यो तो ही डरतो रे । गोसालो जी सीह तणी पर गुंज्या, वीर नां साध सगलाई धज्या रे ॥६॥ वीर री तो लोकां देख लीधी सिधाई, इण में कला न दीसै कांई रे । सिधाई ह तो पाछी देखावत यांन, जब ए पिण ऊभा रहिता क्यांने रे ॥१०॥ ओ तो इण ऊपर चलाय नै आयो, इण कोठग बार रै मांह्यो रे। ओ सुरपणों तो दीस इण मांहि, तिण में कुमीय न दीसै काई रे ॥११॥ जद पिण हंतो लोकां में इसड़ो अंधारो, ते विकलां रै नहीं विचारो रे। ओ गोसालो पाखंडी प्रतख पापो, तिणनै दियो तीर्थंकर थापी रे ।।१२।। चतुर विचक्षण था तिण कालो, त्यां खोटो जाण्यो गोसालो रे। ओ गोसालो कुपातर मूढ मिथ्याती, तिण कीधी साधां री घाती रे ॥१२॥ खिमासूरा अरिहंत भगवंत, त्यांरा ग्यान तणो नहीं अंत रे। त्यांरा कोड़ जीभा करे नित गुण गावै, तो ही पार कदे नहीं आवै रे ॥१४॥ यां लखणां कर तीर्थंकर पिछाणो, ते तो भगवंत महावीर जाणो रे । ओ तो अतिसय ग्यांन गुणे कर पूरा, यांनै कदेय म जाणो कूड़ा रे ॥१५॥ केइ तो भगवंत ने जिण जाण, ते तो एकत त्यांनै बखाण रे। केई अग्यांनी गोसाला री ताणे, ते जिण-गुण मल न जाणे रे॥१६॥ केइ कहै दोन जिण साचा, आपां थी दोनई छै आछा रे। आपां नै यारा झगड़ा में न पड़णो, सगला नै नमण गुण करणो रे॥१७॥: केइ कहै ऐ तो दोनूंई कूड़ा, कर रह्या फेन-फितूरा रे। आप-आप तणों मत बाँधण काजे, तिण तूं झगड़ो करता नहीं लाजे रे ॥१८॥ गोसाला री चौपई, ढा० १७ ४.५ Jain Education International www.jainelibrary.org Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only

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