Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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८४१. समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव
विहरइ८४२. सवह-पडिमोक्खणगं करेंति, करेत्ता
८४३. दोच्चं पि पूया-सक्कार-थिरीकरणठ्याए
८४१. श्रमण भगवंत महावीर जी, जिन जिन-प्रलापो जाण ।
जिन रव प्रकाशता छता, विचरै छै जगभाण ॥ ८४२. संस कराव्या जे हता, तास शपथ कहिवाय ।
तेहनै प्रति मोक्षण करै, सम पाली नै ताय ।। ८४३. द्वितीय वार पिण जे वली, पूजा ने सत्कार ।
ते स्थिर करिवा नै अरथ, थेर आजीवक धार । ८४४. मंखलिसुत गोशाल नां, डावा पग नी जोय।
परही छोड़े दोरड़ी, रज्जु छोड़ी ने सोय ।। ८४५. कुंभकारी हालाहला, तसु कुंभकारि-हट जेह।
द्वार तणांज कपाट प्रति, ताम उधाई तेह ।। ८४६. द्वार कपाट उघाड़ने, मंखलि-सुत गोशाल ।
तसं तनु सुरभि गंध जले, न्हवरावै तिहकाल ।। ८४७. तिमज जाव मोटी ऋद्धे, सत्कृत समुदायेह ।
मंखलिस्त गोशाल न, तनु नुं नीहरण करेह ।।
भगवान के रोगांतक प्रादुर्भाव पद । ८४८. श्रमण भगवंत महावीर तब, अन्य दिवस किहवार ।
सावत्थी नगरी थकी, चैत्य कोठग थी धार ।। ८४६. निकलै निकली बाहिरै, जनपद देश विषेह।
___ करै विहार प्रतै तदा, विचरंता गुणगेह ।। ८५०. तिण काले नै तिण समय, मिढिय ग्रामज नाम ।
नगर हंतो रलियामणो, तसं वर्णक अभिराम ।। ८५१. मिढिय ग्रामज नगर नैं, बाहिर कूण ईशाण।
साणकोठ इहां चैत्य थो, तसु वर्णक अति जाण ।। ८५२. जावत पृथ्वी शिलपट्रक, साणकोठ नामेह ।
चैत्य तणे ते दूर नहीं, नथी ढकडू जेह ॥ ८५३. इहां इक मोटो मालुका-कच्छ गहन जे हंत ।
कृष्ण वर्ण काली प्रभा, जावत निकुरंबभूत ।। ८५४. पत्र पुष्प फलवंत जे, हरित शोभतो जेह ।।
लक्ष्मी करी घणु-घणं, उपशोभित तिष्ठेह। ८५५. ग्राम नगर मिढिय तिहां, नाम रेवती जास।
जे गाथापतिणी वस, ऋद्धिवान धन राश। ८५६. जावत अपरिभूत तब, श्रमण भगवंत महावीर।
अन्य दिवस प्रभुजी कदा, सुरगिर जेम सधीर ।। ८५७. पूर्वानुपूर्वे तदा, विचरंता बड़वीर ।
जावत मिढियग्राम जे, नगर तिहां प्रभु हीर ।। ८५८. साणकोठ जिहां चैत्य छ, जाव परिषदा आय ।
निज-निज स्थानक प्रति गई, वंदी श्री जिनराय ।। ८५६. श्रमण भगवंत महावीर नां, तनु नै विष तिवार ।
विपुल रोग आतंक ही, प्रगट थयो अवधार ।। ८६०. उज्जल जाव दुखे करी, सहि जेहन होय ।
पित्त ज्वरे करि सर्वथा, व्याप्यु तनु अवलोय ।।
८४४. गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स वामाओ पादाओ सुंबं मुयंति,
मुइत्ता ८४५. हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स दुवार
वयणाई अवंगुणंति, ८४६. अवंगुणित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगं सुर
भिणा गंधोदएणं ण्हाणेति, ८४७. तं चेव जाव महया इसिक्कारसमुदएणं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरगस्स नीहरणं करेंति।
(श० १५२१४२) ८४८. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णया कदायि
सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ ८४९. पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ।
(श० १४११४३) ८५०. तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियगामे नामं नगरे
होत्था–वण्णओ। ८५१. तस्स णं मेंढियगामस्स नगरस्स बहिया उत्तर
पुरस्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं साणकोट्टए नाम चेइए
होत्था--वण्णओ। ८५२. जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं साणकोट्ठगस्स
चेइयस्स अदूरसामंते ८५३. एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था-किण्हे
किण्होभासे जाव महामेहनिकुरंबभूए ८५४. पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए
अतीव-अतीव उवसोभेमाणे चिट्ठति । ८५५. तत्थ णं मेंढियगामे नगरे रेवती नाम गाहावइणी
परिवसति--अड्डा ८.५६. जाव बहुजणस्स अपरिभूया। (श० १५११४४)
तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदायि ८५७. पुव्वाणुपुचि चरमाणे जाव (सं० पा०) जेणेव
मेंढियगामे नगरे ८५८. जेणेव साणकोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ जाव परिसा पडिगया।
(श. १५२१४५) ८५९. तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि
विपुले रोगायके पाउन्भूए। ८६०. उज्जले जाव (सं० पा०) दुरहियासे पित्तज्जरपरि
गयसरीरे
३५८ भगवती जोड़
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