Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 411
________________ ढाल : ९ ( थे तो जीव दया धर्म पालो रे अथवा रस गिरधी ते हिलिया गटकं) । जब गोसाले तिन वारो रे, म्हांरो वचन कियो अंगीकारो । हि गोतम ! ओ म्हांरी लारो रे, कूर्म गाम थी कियो विहारो ॥ १ ॥ सिधारथ गाम नै पाछा चाल्या रे, तिल थंभ कनै आया हाल्या । जब गोसाले पुछ्यो मोर्न आमो रे, तिल नीपजसी को तामो ॥२॥ फूल तिल सूधी कही बातो रे, ते प्रतख झूठ मिथ्यातो । ते जावक तिल नीपनों नाहीं रे, नहीं नीपनों फलादिक कांई । ३।। जब हूं बोल्यो सुण तूं गोसाला रे, तिण वेलां किया में चाला म्हांरा वचन री परतीत न आणी रे, थै म्हांने झूठाबोलो जाणी ||४|| तिणसूं मुझ पासा थी धीरे-धीरे रे, छान-छाने आयो तिल तीरे । तिल उखाड़ न्हायो ति कालो रे, जब बादल हुआ ततकालो ॥ ५ ॥ पाणी वरसे तिल श्रंभाणों रे, ऊ निश्चेई तिल नीपजाणों । सात तिल फूल चविया तारे सात तिल हुआ संगळी मां ॥६॥ वनस्पतीकाय मभारो रे, इणविध करें करे पोटपरिहारो । ते तिल ऊभो छे निश्चे आज तांई रे, संका मत आणजे कांई ॥७॥ ए पिण वचन न मान्यो गोसाले रे, तिल आय जोयो तिण काले । संगळी फोर काया वारो रे, सात तिन गिणिया हाथ माशे ॥ तिल गिणियां पर्छ तिण ठामो रे, उपनों अद्यवसाय परिणामो । सर्व जीवां रो एह विचारों रे, करं छं पोटपरिहारो ॥ ६ ॥ इसड़ी ऊंधी इण धारो रे, मों सूं पड़ियो गोसालो न्यारो । मूठी उड़द खाओ जबूनो रे, पुसली पाणी पीये ऊन्हो ॥ १० ॥ निरन्तर बेले तपसा कीधी रे, सूर्य साहमी आतापना लोधी । दोनू ऊंची कर-कर बांहो रे छ महीना लगता ।। ११ ।। एहवो कष्ट कियो इण करूड़ो रे, छ मास लगे तिण पूरो । लबद छ मास रे अंत पाई रे, इण विध तेजू लेस्या उपाई ॥१२॥ एकदा गोसाला रे मांह्यो रे, छ दिशाचर मिलिया आयो । आगे को थे जिस विसतारो रे सगलोई लेवो विचारो ।।१३।। अरिहंत जिण केवली नाही रे, इणरे अतिसय गुण नहि कांई । अरिहंत रा गुण इनमें न पावे रे इस चौड़े झूठ चलायो रे इण ओ डाकोत-पूत गोसालो रे, तिण रो काढ्यो वीर नीकालो ।। १५॥ ओ झूठो नांव धरावे ॥ १४ ॥ सावत्थी नगरी मांह्यो। थे पूछ करी गोयम ! इणरी रे, उठाणपरिया कही तिणरी । गोतम स्वामी बोल्या जोड़ी हाथो रे, आप सत को स्वामीनाथो ! ॥१६॥ Jain Education International ० 00 For Private & Personal Use Only गोसाला री चोपई. ढा०९ ३९३ www.jainelibrary.org

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