Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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५२३. श्रमण भगवंत महावीर जी, जिन जिनप्रलापी जाव जिन रव प्रतै प्रकाशता, विचरै छै सद्भाव ।। गयो मुझ जाण । बांधजो ताण ॥
२४. ते मार्ट देवानुप्रिय ! काल डावा पग र दोरड़ी,
तुम्हे
८२५. डावा पग रै दोरड़ी,
तुम्हे बांधी
तीन वार फुन थूकज्यो, थे मुझ मुख रै २६. तीन वार मुख चूकनें नगरी सावत्यी शृंघाटक त्रिक जाव ही महापंच में २७. उरहो परहो पीसाड़जो मोटे-मोट मोटे-मोट वार-वार उद्घोषणा, करता एम
ने ताहि ।
मांहि ||
माहि
ताहि ॥
रवेह |
वदेह ||
२ नहि निश्च देवानुप्रिय !
मंखलित गोशाल
।
जिन जिनलागी जाव हो, विवरच ए महावाल २१. एहि निश् करी मंचलित गोशाल । छै श्रमण-वधक जावत कियो, छद्म छतेज काल || ३०. श्रमण भगवंत महावीर जो जिन जिन प्रलापी जाय। जिन रव प्रतं प्रकाशता, विचरं छं सद्भाव ८३१. मोटी अण करी, असत्कार समुदाय । तिणे करो मुझ तनु तो नोहरण की ताप ।। निर्हरण पद
८३२. इम कहि कीधू काल तब, आजीवक थिवरेह । मंखलिसुत गोशाल प्रति, मूंओ जाणीनें तेह ॥
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८३३. कुंभकारी हालाहला, तसु तास द्वार ढांकै तदा, २४. कुंभकारी हालाहला, तेह तणां बहु मध्य जे, ८३५. नगरी सावत्थी नुं तदा, आलेली गोशाल नां शरीर ८३६. डावा पग र दोरड़ी, बांध रे तीन बार मुख ने विषे ८३७. नगरी सावस्थी ने विषे शृंपटक
पूर्क
जाय पंथे उरहो-परहो, घीसाइत तिह वार ॥ ८३८ नीचे नीचे शब्द करि उद्घोषणा करत उद्घोषणा करता छता, इह विधि वयण वयंत ॥ ८३२. निश्चै नहीं देवानुप्रिय मंचलित गोशाल ! जिन जनप्रलापी जाब ही, विचरो ए महाबाल || ८४० ए मंखलिसुत गोशाल हिज, श्रमण-वंधक महाबाल । जावत ही छद्मस्थपणे, निश्चै कीधो काल ॥
कुंभकार हट जेह । ढांकी कपाट करेह || कुंभकार हट ताहि देश भाग रै मांहि ॥ स्वरूप आलेखंत | तणोंज मंत ॥ बांधी जोय । थी सोय ।। बिरुधार
८२३. समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिस मासेमारी विद
८२४. तंतुभं णं देवाणुप्पिया ! ममं कालगयं जाणित्ता बामे पाए सुवेणं बंधे,
'सुंबेणं' ति वल्करज्ज्वा
( वृ० प० ६८५ )
२५. ततो मुहे उभेह
२६. उता सारथीए नगरीए सिपाडगाव (सं०पा० ) पहेसु
८२७ आकविकट्ट
करेमाणा महया महवा स
उग्धो से माणा - उग्घोसेमाणा एवं वदह
'कविकट्ट' ति आधिकाम्
( वृ० प० ६०५)
२८. तु देवापिया! गोसाले मंगलिपुत्ते जि जिणप्लावी जाव विहरिए ।
८ २९. एस णं गोसाले चेद मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए ।
८३०. समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव विहरइ ।
८३१. महया अणिड्डी- असक्कारसमुदएणं ममं सरीरगस्स नीहरणं करेज्याह
८३२. एवं वदित्ता कालगए
( श० १५/१४१ ) तए णं आजीविया थेरा गोसालं मंखलिपुत्तं कालगयं जाणित्ता
८३. हालाहलाएं कुंभकारी कुंभकारावणस्थ दुवारा पिति, पित्ता
८३४. हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणस्स बहुमज्भदेसभाए
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८. आहिंति आनिहित्ता गोसालस मंखलिपुत्तस्स सरीरगं
३६. देवे बंधति बंधिता तो मुहे उभंति उभित्ता
८३० साली नगरीए [संपादन] नाव (सं० पा०) पहे कविकट्टरेमाणा
३०. गीयं णीयं स उम्पोसेमामा उम्पोसेमाणा एवं वयासी
८३९. नो खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिण लावी जाव विहरिए ।
८४०. एस णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगए ।
भ० श० १५ ३५७
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