Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाल: ५
[सल्ल कोई मत राखज्यो] बीजा मासखमण रै हूं पारणे, राजग्रही नगरी में आयो जी। तिहां आणंद गाथापति बसै, हूं गयो तिण रा घर मांडो जी॥
वीर कहै सुण गोयमा ! ॥१॥ आं० आणंद हरष्यो मौन देखी आवतो, विनो कियो रूडी रीतो जी। विजय गाथापती नी परे, अंतरंग भाव-भगत सहीतो जी ॥२॥ मौन रसोड़ाघर में लेजाय नै, खंड खाजादिक विविध पकवानो जी। मोनै प्रतिलाभे हरष्यो घणों, संतोष पाम्यो देइन दानो जी ।।३।। तिण देव आऊखो बांधियो, वले कीधो परत संसारो जी। सेष विजै जिम जाणजो, सगलोई विसतारो जी ।।४॥ जब पिण गोसालो मो आगले, विनो कर बोल्यो जोड़ी हाथो जी। थे धर्माचारज मांहरा, हं सिप थारो सामीनाथो ! जी ।।५।। जब पिण आरे इणनै म्है नहि कियो, मून साझे रह्यो तायो जी। वले मासखमण तीजो पचखियो, तंतूवाय-साला में आयो जी ।।६।। तीजा मासखमण रै पारणे, हं राजग्रही में आयो जी। तिहां सुदंसण गाथापति वस, हं गयो तिणरा घर माह्यो जी॥७॥ मोनै देख्यो सूदसण आवतो, विनो कियो रूडी रीतो जी। विज गाथापति नी परे, अंतरंग भाव-भगत सहीतो जी।।८।। मोनै रसोड़ाघर में ले जाय नै, सर्व गुण भोजन सरस आहारो जी। मौन भाव सहित प्रतिलाभियो, हरष संतोष पाम्यो अपारो जी ।।६।। इण पिण देव आऊखो बांधियो, इण पिण कियो परत संसारो जी। विज ज्यं सगलोई जाणजो, गोसाला सुधो विसतारो जी ।।१०।। जब पिण गोसाला मो आगले, विनो करे बोल्यो जोडी हाथो जी। थे धर्माचारज मांहरा, हूं सिष थारो सामीनाथो ! जी ॥११।। जब पिण इण ने आरे म्है नहि कियो, मून साझी रह्यो ताह्यो जी। वले मासखमण चोथो पचखियो, तंतवाय-साला रै मांह्यो जी ।।१२।। तिण नालंदा पाड़ा थी ढ़करो, कोलाग नामे सनिवेसो जी। तिहां बहुल नामे ब्राह्मण वसे, तिण रै रिध प्रभूत वसेसो जी॥१३॥ ते च्यारूई वेद रो जाण थो, ब्राह्मण रा सास्त्र जाण्या अनेको जी। तिण काती चौमासी जीमण कियो, मधु घ्रत संजुगत विशेषो जी ॥१४॥ चोथा मासखमण रै हं पारणे, आयो कोलाग संनिवेसो जी। तिहां बहुल ब्राह्मण रै घरे, म्है तिण में कियो परवेसो जी॥१५।। तिण पिण मोनै आवतो देखन, बिनो कियो रूड़ी रीतो जी। विजै गाथापति नी परे, अंतरंग भाव भगत सहीतो जी ।।१६।। मोन रसोड़ाघर में ले जाय नै, घ्रत मधु संजुगत आहारो जी। मोनै भाव सहीत प्रतिलाभियो, हरष संतोष पाम्यो अपारो जी ॥१७॥
३८८ भगवती-जोड़
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