Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 322
________________ प्रते ४४. जावत ही जिन शब्द प्रति प्रकाश करतो जेह विचरै ते किम एह वच मानिये एम कहेह ? ४५. भगवंत गोतम तिह समय बहुजन समीप एह । अर्थ सांभली हि घरी जाव' जातवद्ध जेह ॥ ४६. जाव भात पाणी देखा गुणगे । जाव सेव करतो तो इहविध वयण वदे ॥ ४७. इम निश्च भगवंत! हूं पारणें जान तिमहिज बहुजन परस्पर, वदैजु इहविध वान ॥ ४८. जावत ही जिन शब्द प्रति प्रकाश करतो जेह । विचरै छै गोशाल ए कहियूँ इहां लगे ॥ ४६. हिव गोतम पूछा करै वीर प्रतं तिणवार । ते क्रिम हे भगवंतजी ! एवच इम अवधार ॥ ५०. ते हूं बांधू हे प्रभु! गोशालक नुं ताम | मंखलित नुं जन्म थी, चरित्र कहो सहु स्वाम || वा० उद्वाणपरियाणियं परिकहियेाग कहता उत्पान जन्म तिहां थकी आरंभी नै पारियाणियं कहितां विविध व्यतिकर-चरित, परिकहियं कहितां ते कहो भगवंत ! एतलं गोशाला नो जन्म थीं चरित्र कहो, हूं सांभलवा वांछू । ५१. हे गोतम ! इम आमंत्री, श्रमण भगवंत महावीर । कहै सुरगिर धीर ॥ बहु जन मांहोमांय | हम कहे इम भावे इम पन्नवे परूपे वाय ॥ जे भगवंत गोतम प्रतै, इम ५२. जेह भणी हे गोयमा ! , मंलि अंगज एह । प्रकाशतो हिरेह ॥ पिण गोतम जाण । एम परूपं वाण ॥ ५३. इम नि गोशालको जिन जिन प्रलापी जान ही, ५४. ते मिथ्या झूठो कहै एम हूं जावत वली, हूँ ५५. इम खलु ए गोशाल नुं मंखलित नं जोप मंखलि नामै भिक्षुक, पिता हूंतो अवलोय || नैं न्हाल | सुकुमाल || भद्रा नार । वाचली नामे ये पता होत्या मंनि महिला मंचन तो हो नाम छँ तिको अनं मंखे कहितां चित्राम रा पाटिया लियां फिरे, एहवो भिक्षुक विशेष एस डाको नीं जाति ते गोशाला नुं पिता ५६. तेह मंखली मंख जे, भिक्षु डाकोत भद्रा नामे भारिया हुंती तनु ५७. जावत ही प्रतिरूप ते, तब ते कदा अन्यदा ते हुई, गर्भवती ५८. तिण काले नैं तिण समय, सरवण एहवै नाम । सब्णिवेस तो तदा भमित अभिराम ॥ ऋद्ध ५२. जावत ही सुरलोक सम से जेहलूंज प्रकाश । पासादीयाजु च्यार पद, देखण योग्य उजास || ६०. तिहां सरवण सणवेश में, गोबल एवं नाम । विप्रवसे ते ऋद्धि करि, परिपूरण से ताम || तिहवार || १. अंगसुत्ताणि भाग २ श० १५ १३ में जायसड़ढे से पहले जाव नहीं है । ३०४ भगवती जोड़ Jain Education International ४४. जाव जिणे जिणसद्दं पगामेमाणे विहरइ । से कहमे मन्ने एवं ? (श० १५/१२) ४५. तए णं भगवं गोयमे बहुजणस्स अंतियं एयमट्ठ सोचा निसम्म जायस ४६. जाव भत्तपाणं पडिदंसेइ जाव (सं० पा० ) पज्जुवासमाणे एवं वयासी ४७. एवं खलु अहं भंते ! छट्ठ तं चेव ! ४५. जाव (सं० पा० ) जिस पायेमाणे विद ४९. से हमे भंते । एवं? ५०. तं इच्छामि णं भंते! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स उद्वाणपरियाणियं परिकहियं । (श० १५।१३ ) वा० 'उद्वाणपरियाणियं' ति परियानं विविधव्यतिकरपरिगमनं तदेव पारियानिकं चरितम् उत्थानात् -जन्मन आरभ्य पारियानिक उत्थानपारियानिक तत्परिकथितं भगवद्भरिति गम्यते । (बु०प०६६१) ५१. गोयमादी ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी ५२. जण्णं गोयमा ! से बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एव भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ५३. एवं खलु गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव जिथे निगस पगातेमाणे विहर। ५४. तमिच्छा अहं पुण दोषमा एव माइक्यामि जाव परूवेमि ५५. एवं खलु एयस्स गोसालस्स मंखलीपुत्तस्स मंखली नाम मंखे पिता होत्या । वा० 'मंखे' त्ति मंख: -- चित्रफलकव्यग्रकरो भिक्षाक(पु०प०६६१) विशेषः । ५६. तस्स णं मंखलिस्स मंखस्स भद्दा नामं भारिया होत्था-सुकुमालपाणिपाया ५७. जाव पडिरुवा । तए णं सा भद्दा भारिया अण्णदा कदायि गुव्विणी यावि होत्था । ( श० १५।१४) ५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सरवणे नामं सण्णिवेसे होत्या-रिमियसम ५९. जाव नन्दनवण-सन्निभप्पगासे, पास। दीए दरिसणिज्जे अभिरू परुिवे | ६० तत्थ णं सरवणे सण्णिवेसे गोबहुले नाम माहणे परिवसइ अड्ढे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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