Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 327
________________ १२९. मंचलित गोशाल तब बहु जन समीप एह अर्थ सुणी हृदये घरी, उपनुं संशय जेह ॥ १३०. कोतुहल मन ऊपनुं, जिहां विजय नुं गेह | तिहां आये आभी करी, विजय घरे देवेह || 1 ३१. बुष्टि द्रव्य धारा सणी पंच वर्ण न जाण फूलां नों ढिगलो पड़यो, अति अद्भूत पिछाण ॥ १३२. विजय तां घर थोज मुझ. नोकलता प्रति देख | देखी नै हरष्यो घणुं, लह्युं संतोष विशेख ॥। १३३. जिहां म्हांरोज समीप छे, तिहां आवै आवीज । तीन वार जे मुझ प्रत, दक्षिण पासा थीज ।। १३४. करै प्रदक्षिण इम करी, मुझ प्रति ते वंदेह | शिरनामे बंदी नमी मुझे प्रति एम कहेह ॥ १३५. हे भगवन ! थे मोहरा, धर्माचारज सार धर्मांतवासी प्रभु ! हूं १३६. तिण अवसर हे गोयमा! मंखलित गोशाल । तेह तणां ए वचन नें, आदर न दियो न्हाल ॥ १३७. मन में भलो न जाणियो, रह्यो मून तिहठाम । प्रथम मास नां पारणो, आस्यो ए अभिराम ॥ वा०--' इहां तीर्थंकर केवल । थारो अवधार ॥ ऊपना पहिला छद्मस्थपणे कोई नैं उपदेश न देव, शिष्य न करें एहवी अनादिया रीत छ । ते भणी भगवंत गोशाल ने अंगीकार न कियो । ठाणांग ठाणे ९ के अर्थ में एहवी गाथा कही छे । ते लिखिये छेन परोवएसविसया, न य छउमत्था परोवएस पि । दिसि न व सीसवमा दिक्ांति जिणा जहा सब्वे ॥ 1 वा० - छद्यस्थ तीर्थकर अनेरा ने उपदेश थकी प्रवत्त नहीं अन अनेरा नैं उपदेश देव पिण नहीं । वलि शिष्य वर्ग नै दीक्षा न दिये । ठाणांग नवमें ठाणे बड़ा टबा में कह्यो तीर्थकर छद्मस्थ थकां उपदेशे न चाले, छद्मस्थ थकां वखाण न करें, शिष्य नैं दीक्षा न दिये, ते माटै छद्मस्थपणे तीर्थंकर ने दीक्षा देवा नीं रीत नथी । ते भणी भगवान गोशाला ने अंगीकार न कियो।' (अ.स.) द्वितीय मासखमण पद १३८. ति अवसर हूँ गोयमा ! निकली नालंद-पाड़ ने नगर राजगृह धीज मध्योमध्य थईज || १३६. तंतुवाय - शाला जिहां, तिहां आव्यो आवीज । द्वितीय मास अंगीकरी, विचरूं ध्यान धरीज ॥ Jain Education International १४०. तिण अवसर हूं गोयमा ! द्वितीय मास नें जेथ । पारणे वणकर- शाल थी निकल्युं निकली तेथ ॥ १४१. नालंदा पाड़ा तणें, मध्योमध्य भईज । नगर राजगृह छै जिहां जावत फिरतांहीज || 1 १२९. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते बहुजणस्स अंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म समुप्पन्नसंसए, १३०. समुप्पन्नको उहल्ले जेणेव विजयस्स गाहावइस्स गिहे तणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासइ विजयस्स गाहावइस्स गिहंसि १३१ वसुहारं वुद्धं, दसद्धवण्णं कुसुमं निवडियं । १३२. ममं च णं विजयरस गाहाव इस्स गिहाओ पडिनिक्खममा पास पासिता १३३, १३४ जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करेत्ता ममं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता ममं एवं वयासी १३५. ममं धम्मादरिया बहण भ धम्मंतेवासी । (० १५.२० ) १६. अगोमा ! enerate r एम गो आदामि, १३७. नो परिजाणामि, तुसिणोए संचिट्ठा मि । १३८. तए णं अह गोयमा ! रायगिहाओ नगराओ पडिनिक्खमामि पांडेनिक्खमित्ता नालंदं बाहिरिय मज्भमज्भेण निग्गच्छामि । १३९. निग्गच्छित्ता जेणेव तन्तुवायसाला तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता दोच्चं मासखमणं उवसंपज्जित्ताणं बिरामि । (श० १५.३०) १४०. तए णं अहं गोयमा ! दोच्च-मासखमणपारणगंसि तन्तुवायसालाओ हिनिमाथि पडिनिम्बमित्ता १४१. नाल बाहिरियं मम निगच्छामि निया छिता व रायगिहे नगरे जाब ( ० पा०) अडमाणे For Private & Personal Use Only भ० श० १५ ३०९. www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460