Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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७२४. ईषत पीड़े मुख इतले स्पर्श
विषे, ते करे.
७२५. का सिवलीपाण ए कह्य
वा अतिही पिण जल नवि
अथ स्यूं ते शुद्ध पाण ?
शुद्ध पाण कहियै तिको, जे छ मास लग जाण ॥
७२६. खावे शुद्ध खादिम जिको वर्त्ते वलि बे मास लग, ७२७. डाभ तणें संथार फुन, तेहने बहु प्रतिपूर्ण ही, ७२८. ए आगल कहिस्यै
संचार विमास ।
संथारो तास ।। दोय मास वर्त्तत । छ मास नीं निशि अंत ॥ तिके, उभय देव दहदीप | महर्द्धिक जाव महेसखा, प्रगट तास समीप ।। ७२९ तास नाम धुर पूर्णभद्र, माणिभद्र सुर तेह शीतल उल्लग हस्त करि तास गात्र फर्शोह ॥ ७३०. अनुमोदै ते सुर प्रतै, रूडूं जाणे जेह । तो आसीदिष कर्म प्रति ते पुरुष पकरेह ॥ ७३१. जे पुरुष ते सुर प्रतं नहि मन अनुमोदेह । तो तमु स्व तनु ने विषे, अग्निकाय उपजेह ॥ ७३२. ते पोता नैं तेज करि, शरीर प्रति सोखेह | निज तेजे तनु दग्ध करि, तठा पछे सीह ॥ ७३३. जावत अन्त करे तिको, एह कहा ं शुद्ध पाण गोशाला नी बात ए प्रभु कही मुनि प्रति जाण ॥ अयंपुल आजीवकोपासक पद
मही
कठ
पीड़ेह | पीवेह ॥
७३४. तिहां सावत्वी नगरी ए. नाम अयंपुल जान || श्रावक आजीवक तणो, वसै धने ऋद्धिवान ॥ ७३५. जेम कही हालाहला, विमहिज जावत एह
आजीवक सिद्धांत करि, आत्म भावित विचरेह ॥ ७३६. तिण अवसर गोशाल नुं श्रमणोपासक जेह
नाम अयंपुल तेहनें, मध्य रात्रि समवेह || ७३७. कुटंब जागरणा जागतो, ए एहवे रूपेह
अध्यातम आतम विषे, जावत मन उपजेह ||
७३८. स्यूं संठाण परूपियो, हल्ला' जीव सुदोठ | गोवालिका तृण सारिखे आकारे जे कीट ॥
७३६. ताम अयंपुल नैं वली,
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द्वितीय वार पिण एह ।
एहवे रूपे आत्म विषे जावत मन उपजेह ॥
"
७४०. इस निश् करि महरा, धर्माचारज न्हाल | उपदेशक जे धर्म नां, मंखलिसुत गोशाल ॥ १. गोवालिका तृण सरीखे आकारे कीट विशेष आपणपो तृणे करी वीं लोक रूढे सुघरी इति । ते हला जीव कहिये तेहनो स्यू संठाण - स्यू आकार ?
७२४. आसगंसि आवीलेति वा पवीलेति वा, न य पाणियं
पियति ।
७२५. सेत्तं सिबलिपाणए ।
से कि तं सुद्धपाणए ? सुपाणए म्यासे
७२६. सुद्धखाइमं खाइ, दो मासे पुढवीसंथारोवगए, दो मासे कसंथा रोवगए,
७२७. दो मासे दब्भसंथारोवगए, तस्स णं बहुपडिपुण्णाण छहं मासाणं अंतिमराईए
७२८. इमे दो देवा महिड्डिया जाव महेसक्खा अंतियं पाउब्भवंति, तं जहा
( श० १५/१२६ )
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७२९. पुष्पमय माणिभद्दे तए णं ते देवा सीलएहि उत्तएहि हत्थेहि गामाई परागुसंति,
७३०. जेणं ते देवे साइज्जति, सेणं आसीविसत्ताए कम्म पकरेति,
७३१. जेणं ते देवे नो साइज्जति तस्स णं संसि सरीरगंसि अगणिकाए संभवति,
७३२. से णं सएणं तेएणं सरीरगं झामेति, झामेत्ता तभ पच्छा सिज्झति ।
७३३. जाव अंत करेति । सेत्तं सुद्धपाणए ।
(० १५ १२७)
७३४. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए अयंपुले नामं आजीविओवासए परिवस अ
७३५. जहा हालाहला जाव आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहर।
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७३६. तए णं तस्स अयंपुलस्स आजीविओवासगस्स अण्णया कदायि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि
७३७. कुडुंबजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अमल्पिए जाव (to पा० ) संकष्पे समुपजत्वा -
७३८. किंसंठिया णं हल्ला पण्णत्ता ? (= {KIPRE) 'हल्लति गोवासिकातृणसमानाकार: कीटकविशेषः । (बु०प०६८४) तस्स अयं सस्स आजीविसोवासमरस दोच्च पि अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव (सं० पा० ) समुपज्जित्था ।
७३९. तए णं
७४० एवं खलु ममं धम्मापरिए धम्मोवदेसर गोसाले
मंत
भ० श० १५ ३५१
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