Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
७४१. उत्पन्न ज्ञान दर्शण तणां धरणहार गुणधार । यावत ते सर्वज्ञ फुल सहु नां देखणहार | ७४२. इणहिज नगरी सावत्थी, हालाहला नामेह । कुंभकारिका नों जिको, कुंभकार हाटेह || ७४३. आजीविक संघ परिवरयो, आजीवक समयेह । आतम प्रभावित थको ७४४ ते मार्ट श्रेय मुझ भणी, जाव जलते रवि उदय,
७४५. मंचलित गोशाल प्रति, जावत ही पर्युपासना, सेव ७४६. ए एहवे रूपे जिको, व्याकरण तेह पूछिबू इम करी, इम चितं ७४७ एवं मन में चितवी, काल्हे हाए कृतवलिकम्म प्रमुख, जाव
७५२. शीतल मृद मिश्रित जले, सींचतो देखे तदा ७५३. बलि ते कहितां अति लभ्यं
विचरं छं गुणगेह ॥ निश्चे काल्हे जोप । तेह समय अवलोय ||
७४८. भार अपछे जे विषे, मोले एहवे आभरणे करी, अलंकारी ७४८. पर थी निकले नीकली, पालो तेह सावत्थी नगरीई, ७५०. कुंभारी हालाहला, कुंभ जिहां हाट आवे विहां, ७५१. देख लियो गोशाल प्रति अंब फल जाव ही, हस्त
बंदी ने विधि रीत । करी घर प्रीत |
७५४. हलुवे - हलुवै गमन करि, तब आजीवक नां स्थविर,
प्रश्न उदार । तिहवार ।। जाव जलत । शब्द में हुंत ॥
जावत मात्र प्रतेह देखी लज्जित देह || वेविडे कहितां ताय । अत्यन्त गाढो लाजियो, चलचित पयुं सवाय ||
।
मुंहचा जेह निज देह ॥ पंथ विषेह
Jain Education International
|
थई
मध्यमध्येह || करिवा नों जान । आवीने तिह स्थान | कुंभकार हाटेह कर जोड़तो जेह ||
पाछो ही ओसरत । तेह अयंपुल प्रत ॥
७५५. लज्जित जावत जेहनें, पाछो उस देख देखी इम कहै, आव अयंपुल
जेथ । एथ ।।
७५६. तेह अयंपुल तिह समय, आजीवक थिवरेह | इम कहाँ खतेज ते कने, तुरत हीज आवेह ||
७५७. आवी आजीवक तणां विवरांप्रतं वंदेह | नमस्कार बलि त करें, बंदी नमी शिरेह ॥
३५२ भगवती जोड
७४१. उप्पन्ननाणदंसणधरे जाव (सं० पा० ) सव्वण्णू सव्वदरिसी
७४२ इहेब सावरलीए नगरीए हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि
७४३. आजीवसंपरिबुडे आजीवियसमए जा भावेमाणे विहरइ |
७४४. तं सेयं खलु मे कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते
७४५. गोसाल मंसिपुत वंदिता नाव पनुवासिता
७४६. इमं एयारूवं वागरणं वागरितए ति कटट एवं पति
७४७. संपेता कस्ले पाउपभाए रपणीए नाव उद्रियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्म गियरे या जलते पहाए कयबलिकम्मे
७४८. अप्पमहन्याभरणाकियसरी
७४९. साओ गिहाओ पडिनिक्खमति, पडिनिक्ख मित्ता पायविहारचारेणं सार्वत्थि नगर मज्भंमज्झेणं ७५०. जे हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
1
७५१. गोमंत हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूण गहत्थगयं जाव (सं० पा० ) अंजलिकम्मं करेमाणं
७५२. सीयलएणं मट्टिया जाव (सं० पा० ) गायाइं परिसिंचमाणं पासइ, पासित्ता लज्जिए
७५२ लिए विदे
'बिलिए'
'व्यलोकितः सन्नातव्यलीक: 'बिहे'
त्ति व्रीडाऽस्यास्तीति व्रीड : लज्जाप्रकर्षवानित्यर्थः । (बु०प०६०४, ०५५)
( ० १५ १२९)
तए णं ते आजीविया थेरा अयंपुलं आजीवियोवासगं
७५४. सणियं सणियं पच्चोसक्कइ ।
७५५. लज्जियं जाव पच्चीसक्कमाणं पासइ, पासित्ता एवं बयासी - एहि ताव अयंपुमा ! इतो
For Private & Personal Use Only
( श० १५/१३० ) ७५६. तणं से अयंपुले आजीवियोवासए आजीवियथेरेहि एवं वृत्ते समाणे देव बाजीविया पेरा रोव उवागच्छर,
७५७ उबागपिता आलीजिए बेरे बंदर, गर्मस, वंदित्ता नमंसित्ता
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460