Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२७२. जिहां तिल- थंभ तिहां आपने म्हातोज उपाड़ ने हे
यावत एकांत ठाम । गोशालक ! ताम ||
२७३. ततखिण बादल अभ्र दिव्य, प्रगट तब ते दिव्य अभ्र बदल भट, तिमहिज
२७४ तेहिज तिल नां यंभ नीं, एक सिंगली मांहि । तदा ऊपनां सप्त तिल, जेम कयूँ तिम ताहि ॥ २७५. हे गोणाला ! तेह एह तिल नों बंभ निप्पन्न । नयी तेह अणनीपनो, निश्वं करी इम जन्न ॥ २७६. ते सप्त तिल पुफ-जीव मरि ए तिल थंभ नीं जाण । एक सिगली में विषे थया सप्त तिल आण ||
थयो गोशाल । यावत न्हाल ॥
२७७. इम निश्चै गोशालका ! वनस्पती रे मांय ।
पट्ट- परिहार कर तिके, मरि-मरितसु तनु आय ॥ या०वगस्पति कहितां वनस्पति नां जीव के परिवृत्य-मरीमरी ने एहि वनस्पति ना शरीर तो परिहार परिमोन परिभोग ते तिहां ईन उपज से परिवृत्य - परिहार कहिये ते प्रति परिहरति - करं ।
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२७८. मंखलित गोशाल तब मुझ इस कहये छतेह। एह अर्थ श्रर्द्ध नहीं, न प्रतीत न रुचेह ||
२७६. एह अर्थ अणधद्धतो जाय रोचवतो नांय जिहांज ते तिल-धंभ . आये तिहां पलाय ॥ २८०. जिहां तिस-यंत्र विहां आय ने ते तिल वंभ थकीज ते तिल तणी फली प्रतं तोड़े ततखिण हीज । २१. ते तिल-संगल तोड़ने करतल विषेज सोय । सप्त तिल फोड़े तदा, प्रगटपणें अवलोय ॥ २२. तिण अवसर गोमाल नं. सप्त तिल गिणतां एह
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एहवं रूपै आत्मनि, जाब समुत्पन्न जेह ॥ २८३. इम निश्चै सहु जीव पिण, पउट्ट परिहार करेह । हे गोतम! गोशाल नों पउट्ट जाणवूं एह ॥ २८४. हे गोतम ! गोशाल नों मुझ पासा थी जेह । आत्माई करिकै तसुं पड़िबू जुदो कहेह
वा० - वृत्तिकार आयाए पाठ नां बे अर्थ किया । भगवंत कहे- मांहरा पासा थी आयाए कहितां आत्माई करी अपक्रमण ते जुदो पड़यो -- नीसरघो अथवा आयाए कहितां आदाय तेजोलेश्या नों उपदेश ग्रहण करी नैं जुदो पड़यो ।
तेजोलेश्या उत्पत्ति पद २५. मंखलित गोशाल तब इक मुष्टी इक पुसली उष्णोदके, छटु छटु तप
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उड़देह | करेह ॥
२७२. जेणेव से तिलथंभए तेणेव उवागच्छसि, उवागच्छित्ता तं तिसरं भगं सदुपायं व उप्पादेसि उप्पाता एतते एसि । २७३. तक्खणमेतं गोसाला ! दिव्वे अब्भवद्दलए पाउब्भूए । तए णं से दिव्वे अब्भवद्दलए खिप्पामेव पतणतणाति, खप्पामेव तं चैव जाव (सं० पा० )
२७४. तस्स चैव तिलयंभगस्स एगाए तिलसंगलियाए सत्ततिला पच्चायाया ।
२७५ तं एस णं गोसाला ! से तिलथंभए निष्फन्ने, नो अनिफन्नमेव ।
२७६. ते पुण्फनीया उदाइता उदाइता एयस्स वेव तिलभयस्य एमाए तिलियाए सतिसा
पच्चायाया ।
२७७. एवं खलु गोसाला! वणस्सइकाइया पउट्टपरिहारं परिहरति । (१० १२००३) वा 'बगरसइकाइयाओ पट्टपरिहारं परिहति ति परिवृत्त्य - परिवृत्त्य-मृत्वा मृत्वा यस्तस्यैव वनस्पतिशरीरस्य परिहारः परिभोगस्तत्रैवोत्पादोऽसौ परिवृत्य परिहारस्तं परिहरन्ति कुर्वन्तीत्यर्थः । ( वृ० प०६६०) २७८. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते ममं एवमाइक्खमाणस्स जाय परमाणस्स एवम मी सह नो पतिव नो रोएइ ।
२०९. एम असहमाणे अपसिपमाणे बरोएमाणे जेणेव से तिल भए तेणेव उवागच्छर,
२८०. उवागच्छित्ता ताओ तिलथंभयाओ तं तिलसंगलियं
बहुद्द
२८१. खुड्डित्ता करयलंसि सत्त तिले पप्फोडेइ ।
(श० १२०७४) २८२. लए गं तस्स बोसातस्स मंचलितस्स ते सतिले गणमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव (सं० पा० ) समुपज्जत्था ।
२०३. एवं खलु सजीवा वि पट्टपरिहारं परिहरतिएस णं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स पउट्टे । २०४ एस गोपमा मोसाnee मनिपुत्तरस ममं अंतिया आयाए अवक्कमणे पण्णत्ते ।
(श० १५/७५)
२८५. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते एगाए सणहाए कुम्मासपिडियाए एगेण य विवासएवं खट्ठट्ठे अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं
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भ० श० १५ ३२१
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