Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नै आणंद कही। अनं हूं भगवान कन्है आयनं सगला समाचार गोशाले कह्या ते भगवान नै हैं कह्या। वली भगवान नै प्रश्न पूछया, ए समाचार गोतमादिक ने कह्या पाठ में चाल्या नथी, ते किण कारण ? तेहनों उत्तर-आणंद स्थविर मैं गोशाले बात कही, तिका बात तो सगली गोतमादिक ने कही। गोशाले कह्यो छ-'गोशाला सू धर्म पडिचोयणा, धर्म पडिसारणा, धर्म प्रति उपचार कीजो मती।' गोशाले श्रमण निग्रंथ सूं म्लेच्छ भाव पड़िवज्यो छै। इम कहते छते भगवान विराज्या, तिहां गोशालो आय गयो। तिणसू आणंद स्थविर भगवान कन्है आय गयो । गोशाला रा समाचार कह्या, प्रश्न पूछया, ते बात गोतमादिक नै कहि सक्यो नहीं । एहवू न्याय संभवै ।' (ज.स.)
गोशालक द्वारा स्वसिद्धान्त निरूपण पद ४६३. जितले आणंद थविर जे, गोतमादि मैं न्हाल ।
एह अर्थ कहै तेतले, मखलिसुत गोशाल ।।
४६४. कुंभारी हालाहला, तसु आपण थी ताम ।
निकली आजीविक तणां, संघ संघाते आम ।। ४६५. निज संघ साथे परवरयो, महाअमरिस अभिमान ।
तिण करिके वहितो छतो, शीघ्र त्वरित ही जान ।। ४६६. जाव सावत्थी मध्य थई, जिहां छै कोट्ठग बाग ।
जिहां श्रमण भगवंत छ, महावीर महाभाग ।।
४६३. जावं च णं आणंदे थेरे गोयमाईण समणाणं
निग्गंथाणं एयमट्ठ परिकहेइ, तावं च णं से गोसाले
मंखलिपुत्ते ४६४. हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणाओ पडिनिक्ख
मइ, पडिनिक्खमित्ता आजीवियसंघसंपरिवुडे ४६५. महया अमरिसं वहमाणे सिग्धं तुरियं
४६६. सावत्थि नगरि मझमझेणं निग्गच्छइ,
निग्गच्छित्ता जेणेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं
महावीरे ४६७. तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ
महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा ४६८. समणं भगवं महावीरं एवं वदासी
४६७. तिहां आवै आवी करी, श्रमण भगवंत महावीर ।
तसु नहिं अलगो टूकड़ो, एम रही प्रभु तीर।। ४६८. श्रमण भगवंत महावीर प्रति, इहविध बोले वाय ।
वचन ओलंभा रूप ते, गोशालो कहै ताय ।। ४६६. सुठु णं कहितां भलो, हे आउखावंत !
हे कासप ! तूं मुझ प्रतै, एह वच आखंत ।। ४७०. गोशालक सुत-मंखलि, धर्मातेवासी मोय ।
वार-वार तूं इम कहै, तिणसूं पाठ बे वार सुजोय ।। ४७१. जे तुझ शिष्य गोशालो हुँतो, ते सूको शुष्क सरीस ।
बह रुधिर अने मांसे करी, शुष्क थई सुजगीस ।। ४७२. काल अवसरे काल करि, कोइक सुरलोकेह ।
देवपणे ते ऊपनों, हिव मुझ विगत सुणेह ।।
वा०---कोई कहै-भगवान गोशालो नै दीक्षा न दीधी, तेहनो उत्तरइहां भगवान ने गोशाले कह्यो-मुझ मैं तूं कहै गोशाले मंखलि-पुत्र माहरो धर्मातेवासी शिष्य, ते तो तन सूकावी, काल करी देवता थयो । इम गोशाले पिण कह्यो, ते माट भगवान गोशाला नै दीक्षा दीधी। ४७३. हं तो उदाई नाम जे, कुंडियायण गोत्री तास ।
तिण अर्जुन गोतमपुत्र नां, तनु प्रति तज्यूं विमास ।। ४७४. अर्जुन तनु प्रति तजि करी, मंखलिसुत गोशाल ।
तेह तणां जे तनु विष, प्रवेश कीधू न्हाल ॥
४६९. सुठु णं आउसो कासवा ! ममं एवं वयासी
साहू णं आउसो कासवा ! ममं एवं वयासी४७०. गोसाले मंखलिपुत्ते ममं धम्मंतेवासी गोसाले ____ मंखलिपुत्ते ममं धम्मतेवासी। ४७१. जे णं से गोसाले मंखलिपुत्ते तव धम्मंतेवासी से णं
सुक्के सुक्काभिजाइए भवित्ता ४७२. कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु
देवत्ताए उववन्ने ।
४७३. महण्णं उदाई नाम कुंडियायणीए अज्जुणस्स गोयम
पुत्तस्स सरीरगं विप्पजहामि ४७४. विप्पजहित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सरीरयं
अणुप्पविसामि
३३४ भगवती जोड़
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