Book Title: Bhagavati Jod 04
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 329
________________ १५५ विस्तीरण कहितां पणुं मधु घृत सहित सुहाय । परमान्न क्षीर संघात ही, विप्र जिमाया ताय ।। वा - मधु कहितां मीठो ते खांड अथवा मधु कहितां दूध 1 १५६. शुद्धपर्य 'बलु' कराविया हूं गोयम ! तिह वार , मासखमण चउथा तर्णं १९५७. तंतुवाय- शाला तंतुवाय शाला की, १५८. नालंदा पाड़ा तणें, निकली ने कोल्लाग जे १५६ तिहां आयं आवी करी तिहां उच्च नीच जाय ही, १६०. ब्राह्मण बहुल त घरै पारण दिन सुविचार ॥ थकी हूं निकल्युं अवधार । निकली कियो बिहार ॥ थई मध्य मध्येह | सन्निवेस छै तेह || कोलाग सन्निवेस फिरतां तां विशेष ।। हूं पेटो सुविशेत्र । विप्र बहुल तिह अवसरे, मुझ प्रति आवत देख ॥। १६१. तिमहिज जावत मुझ प्रतं विपुल विस्तीर्ण स्वात । ते मधु घृत संयुक्त हो, परमाग्न क्षीर संपात ।। १६२ हूं प्रतिलाभ एवं चितवि हरथ्यो चित्त । शेष कयू जिम विजय ने तिमहिज बहुल कथित ।। १६३. जावत ब्राह्मण बहुत ही दीखूं मोटो दान करता बहुविध जान ॥ मंखलिपुत्र कहाय । अणदेखतो ताय ।। सहितज बार J मुझ प्रति सह दिशि ने विषे सर्व प्रकारे धार ॥ वार-वार गुणग्राम तसु १६४. तिण अवसर गोशाल ते, मुझ प्रति वणकर-शाल में १६५. नगर राजगृह ने विषेभ्यंतर १६६. मार्गण - गवेषणा करें, मांहरो किणही स्थान । श्रुति वा खुति वा प्रवृति अणलाभतो जान ॥ 1 वा० -ममं कवि सुति वा खुति वा पर्वात्त वा अलभमाणे । ममं - मांहरो, कत्थवि किहांई, सुति-शब्द मात्र सांभलं ते श्रुति । आंखे अणदेखीवो जे अर्थ ते शब्द करि निश्चय करें ते माटै श्रुति नो ग्रहण, खुति छींक कृत । एणे पण अदृश्य मनुष्यादिक नीं गमिता हुवै एतला मार्ट छींक नों ग्रहण कीधो ते छींक मात्र अथवा पवत्ति वार्त्ता पिण अणलाभतो थको । १६७. जिहां वणकर नीं शाल है, तिहां आवै आवीज । वस्त्र पहिरवा नां तदा, उत्तरीय वस्त्र कहीज || १६८. अथवा भाजन - कुंडिका, क्वचित भंडिका मान । भाजन रांधण प्रमुख नांवली पानही जान ॥ १६. वली चित्र नां पाटिया, ए वस्त्रादिक धार । आप ब्राह्मण नैं तदा, आपी ने तिहवार ॥ Jain Education International १२५. बिउले मषय माहणे परमगं 'परमन्ने' ति परमन्नेन००९६४) १५६. आयामेत्था । (श० १५०४६) तए णं अहं गोयमा ! चउत्थमासखमणपारणगंसि १५७. तंतुवायसालाओ पडिनिक्खिमामि पडिनिक्ख मित्ता १५८. नालंदं बाहिरियं मज्झमज्भेणं निग्गच्छामि, निम्गच्छिता जेणेव कोल्हा सि १५९. तेणेव उवागच्छामि, उवागच्छित्ता कोल्लाए सणिवेसे उच्चनीय जात्र (सं० पा० ) अडमाणे १६०. माहूरस निहं अणुपविट्ठे । ( ० १५/४७) तए णं से बहुले माहणे ममं एज्जमाणं पासइ, पासित्ता १६१. तहेव जाव ममं विउलेणं महुघय संजुत्तेणं परमण्णणं । १६२. पडिलाभेस्सामीति तुट्ठे सेसं जहा विजयस्स । १६३. जाव बहुले माहणे २ । ( ० १५४०-५०) १६४ए से मोसाले मंखलितं ममं तंतुवायसालाए अपासमा १६. रायगि नगरे समितरबाहिरियाए ममं सव्यमो समंता For Private & Personal Use Only १६६. करे मम त्वयि सुतिनाति वा पर्वात्त वा अलभमाणे वा० - 'सुई व त्ति श्रूयत इति श्रुतिः शब्दस्तां चक्षुषा किल अदृश्यमानोऽर्थः शब्देन निश्चीयत इति श्रुतिग्रहणं 'खुई व' त्ति क्षवणं क्षुतिः छीत्कृतं ताम्, एषाऽप्यदृश्य मनुष्यादिगमिका भवतीति गृहीता, 'पर्वात्त व' त्ति प्रवृत्ति वार्त्ता । ( वृ० १०६६४) १६७. जेणेव तंतुवायसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता साडियाओ य पाडियाओ य 'साडियाओ' त्ति परिधानवस्त्राणि 'पाडियाओ' त्ति उत्तरीयवस्त्राणि | (२०१०६६४) १६८. कुंडियाओ य वाहणाओ' य । १६९. चित्तफलगं च माहणे आयामेइ, आयामेत्ता १. पाठान्तर में 'पाहणाओ' शब्द लिया गया है । भ० श० १५ ३११ www.jainelibrary.org

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