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३१. तीनसौ पंचमी ढाल कही ए, भिक्षु भारीमाल ऋषिराय जी।
तीर्थ संपती सखर साहिबी, 'जय-जश' हरष सवाय जी ।।
गीतक छंद १. चउदम शत नीं जोड़ कृत सद्गुरु प्रसाद थकी मया।
जन भव्य ने कल्याण सिद्धी वर स्वभाव सुगुरु दया ।। २. ते परम उपकारक सुगुरु नी जय विजय थावो सदा । सम्यक्त्व चरण सुबुद्धि पाई तसु प्रसाद थकी मुदा ॥
१,२. चतुर्दशस्येह शतस्य वृत्ति
र्येषांप्रभावेण कृता मर्यषा। जयन्तु ते पूज्यजना जनानां कल्याणसंसिद्धिपरस्वभावाः। (वृ०प० ६५७)
श.१४,७०१०, ढा० ३०५ २९७
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