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अवचेतन मन से संपर्क
को ? उसने कहा-मां ! मेरे पास जीतने की अनोखी कला है । उस कला को वे बेचारे पंडित जानते ही नहीं । इसलिए वे आते और हारकर चले जाते । मां की उत्सुकता बढ़ी । उसने पूछा—बेटे ! क्या है वह अनोखी कला ? वह बोला- मां ! पंडित मेरे पास आता, बड़ी-बड़ी बातें करता । शास्त्रों की बातें करता। मैं मौन सुनता रहता । अन्त में मैं एक ही उत्तर देता- तुम झूठ हो, मैं सच्चा हूं । मेरे इस उत्तर से वह सकपका जाता । वह और कुछ कहता पर मैं तो एक ही उत्तर देता- तुम झूठ हो, मैं सच्चा हूं । इस कला से मैं सबको जीतता गया । मेरा उत्तर अमोघ बन गया ।
संभव है - आज भी व्यक्ति में इतना आग्रह हो गया है। वह सोचता है, कुछ भी हो समाज टूटे, परिवार टूटे, जाति टूटे, सब धरातल में चले जाएं, पर मेरे पास जीने की एक कला है, और उसका सूत्र है- 'पैसा मेरा और सब अनेरा ।'
जब अपरिष्कार का इतना आग्रह बन जाता हैं तब सारी उलझनें पैदा होती हैं । ध्यान और श्वासप्रेक्षा के द्वारा हम ऐसी चेतना का निर्माण करें, जिससे परिष्कार घटित होता जाए । काम का परिष्कार हो, अर्थ का परिष्कार हो और परिष्कार होता ही जाए। हम पहले अर्थ के परिष्कार के लिए प्रयत्न न करें | वह काम के परिष्कार से स्वयं होने वाला परिणाम है । जब काम सक्रिय होगा तो उसका परिणाम निष्क्रिय कैसे हो पाएगा ? हम कामकामना के परिष्कार के लिए सघन प्रयत्न करें। उसके घटित होने पर अर्थपरिष्कार दुरूह नहीं होगा, स्वयं आयेगा ।
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