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काम-परिष्कार का पहला सूत्र : मुक्तिदर्शन
हैं, हमारी शक्ति प्राण के माध्यम से प्रकट हो रही है, प्राण के रूप में प्रकट हो रही है। एक प्रकार के प्राण का एक आकार बनता है, संस्थान बनता है और हम उस संस्थान में जीते हैं। हमारी शक्ति की अभिव्यक्ति प्राण के रूप में होती है।
प्राण अनेक है-इन्द्रियप्राण, मनप्राण, वचनप्राण, शरीरप्राण, श्वासोच्छ्वासप्राण, आयुष्यप्राण । ये सारी शक्तियां हमारी अभिव्यक्तियां हैं । एक महास्रोत से ये सारी अभिव्यक्तियां हो रही हैं । प्राण चेतन भी नहीं है और अचेतन भी नहीं है । प्राण चेतन और अचेतन से बना हुआ तीसरा तत्त्व है। दोनों का मिश्रण है।
हमारे शरीर की शक्ति भी असीम है। उसकी हमें जानकारी नहीं है । प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में, अनेक लोगों ने शरीर को समझने का प्रयत्न किया है
और उसे समझा है । इससे पूर्व हमारे आस-आस में भी शरीर के विषय में यही धारणा थी कि शरीर अपवित्र है, अशुचिबहुल है, नश्वर है, एक दिन नष्ट होने वाला है । वैराग्य के संवर्धन के लिए ये आलम्बन निर्मित किए गए । इसी के आधार पर 'अनुप्रेक्षा' का विकास किया गया, जिसे 'अशुचिअनुप्रेक्षा' कहा जाता है।
बारह अनुप्रेक्षाओं में एक अनुप्रेक्षा है-अशौच अनुप्रेक्षा । इसका अर्थ है-शरीर की अशुचिता के विषय में चिंतन करना, अनुप्रेक्षण करना । बात गलत नहीं है । शरीर का जो वर्णन प्राप्त है, उस शरीर से विरक्ति घटित करने के लिए जो बतलाया गया, वह गलत न होने पर भी पूरा सही नहीं है । वह मात्र एक कोण से सही है।
शरीर को देखने का दूसरा कोण भी है । शक्ति, चेतना और आनन्द की सारी अभिव्यक्तियां इसी शरीर के माध्यम से होती हैं । शरीर में इतने केन्द्र हैं, इतने 'स्विच बोर्ड' हैं, इतने स्रोत हैं कि जिनका विकास करने पर आनन्द का अवतरण होता है, शक्ति का स्रोत फूटता है, चेतना की रश्मियां प्रस्फुटित होती हैं। आवरण के हटने पर भीतर की संपदा अभिव्यक्त हो जाती है, पर उसका माध्यम यह शरीर ही बनेगा । शरीर के रहस्यों को जाने बिना, शक्ति स्रोतों का ज्ञान किए बिना हम ऐसा कर नहीं सकते।
जिन लोगों ने शरीर का गहराई से अध्ययन किया है, वे बहुत आगे बढ़े हैं, चिकित्सा के क्षेत्र में, साधना के क्षेत्र में । चिकित्सा की दो पद्धतियांएक्पूपंक्चर और एक्यूप्रेजर---प्राणशक्ति के आधार पर, शरीर के आधार पर चल रही हैं। हमारे पूरे शरीर में प्राण की धारा प्रवाहित हो रही है। इसे हम ऊर्जा की धारा कहें, वायोइलेक्ट्रीसिटी की धारा कहें या जैविक विद्युत् कहें । यदि शरीर का सूक्ष्म फोटो लिया जाए तो पता चलेगा-जैसे पूरा शरीर कुछ रश्मियों से बंधा हुआ है । ये ऐसी रश्मियां हैं, जो पैर से लेकर सिर तक
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