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मस्तिष्क के नियंत्रण का विकास
एक सूअर सिंह के पास आकर बोला- मुझसे लड़ो। सिंह ने उसकी बात टाल दी। उसने सोचा, क्या लडूं सूअर के साथ । सूअर ने दूसरी बार कहा, तीसरी बार कहा, पर सिंह तैयार नहीं हुआ । चौथी बार सूअर ने कहा - 'या तो तुम मेरे साथ लड़ो, या फिर मैं सबको कहूंगा कि सिंह मेरे से हार गया ।'
सिंह बोला
गच्छ सूकर ! भद्रं ते वद सिंहो जितो मया । पण्डिता एव जानन्ति सिंहसूकरयोर्बलम् ॥
-- भाई सूअर ! जा, सबको कहदे कि मैंने सिंह को हरा डाला I मुझे इसकी चिन्ता नहीं है, क्योंकि जानकार व्यक्ति अच्छी तरह जानते है कि सिंह और सूअर के बल में कितना अन्तर होता है । कहां सिंह और कहां सूअर !
कहानी है । आज भी भावनाओं का अध्ययन
ऐसा ही कुछ हो रहा है । कर रसायनों के द्वारा भावों
यह पौराणिक वैज्ञानिकों ने मनुष्य की को परिवर्तित करने का प्रयत्न किया है । इससे स्थिति बदल गई है। एक वैज्ञानिक ने सिंह और खरगोश पर प्रयोग किया । उन दोनों के मस्तिष्क पर इलेक्ट्रोड लगा दिए। फिर दोनों को लड़ने के लिए बाध्य किया। दोनों लड़ने लगे, पर आश्चर्य, सिंह एक कोने में दुबक कर बैठ गया और खरगोश बार-बार उस पर आक्रमण करने लगा । खरगोश सिंह पर हावी हो गया । सिंह पराजित की भांति बैठा रहा । सिंह खरगोश का मुंह ताक रहा है और खरगोश आक्रमण कर रहा है । क्या यह संभव है कि सिंह खरगोश से हार जाये ? कभी संभव नहीं है । पर प्रयोग से यह भी संभव बन जाता है ।
हमारा मस्तिष्क विद्युत् प्रवाह और रसायनों द्वारा बहुत प्रभावित और अनुशासित है । दोनों व्यक्ति को प्रभावित करते हैं । संभव है - प्राचीनकाल में भी यह तथ्य ज्ञात कर लिया गया था और उसी के आधार पर विविध प्रयोगों का विधान किया गया था । आज के वैज्ञानिक यन्त्रों के माध्यम से इन सचाइयों का पता लगा रहे हैं और वे अनेक निष्कर्षों पर पहुंचे हैं । कौन सा रसायन क्या प्रतिक्रिया पैदा करता है ? कौन से केन्द्र पर इलेक्ट्रोड लगाने से क्या प्रतिक्रिया होती है ? ये तथ्य आज बहुत स्पष्ट हो चुके हैं । हमारे शरीर में प्रवृत्तियों और आवेगों के उद्भव और नियमन - दोनों के केन्द्र बने
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