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भाव-परिवर्तन और मनोबल
हो जाता है, वह कठिनाइयों या विपत्तियों में कभी नहीं टूटेगा, कभी नहीं बिखरेगा।
ध्यान केवल मन को एकाग्र करने का ही दर्शन नहीं है, वह जीवन का समग्र दर्शन है । जिस व्यक्ति ने ध्यान को जीवन के समग्र दर्शन के रूप में नहीं समझा, उसने संभवतः ध्यान के हार्द को भी नहीं समझा। उसे फिर से समझना होगा कि ध्यान केवल एकाग्रता के विकास के लिए ही नहीं है। ध्यान किया, मन को शांति मिली। ध्यान से उठे, शांति समाप्त । ध्यान ऐसी प्रणाली नहीं है । वह रात-दिन हमारा मार्ग दर्शन करने वाला तथ्य है । वह हमारे जीवन पथ को समग्रता से आलोगित करने वाला दीपक है । ध्यान को व्यापक अर्थ में स्वीकार करना चाहिए । ध्यान को संकुचित अर्थ में समझना, उसके साथ अन्याय करना है। ध्यान से जीवन का क्रम बदलना चाहिए। ध्यान करने वाला व्यक्ति क्रूर व्यवहार करता है, छलना करता है, भ्रष्टाचार करता है, दूसरों को ठगता है तो फिर वह ध्यान नहीं करता, जीवन में विडम्बना पालता है । जिस व्यक्ति ने ध्यान और अध्यात्म को समझा है, उसमें इतनी संवेदनशीलता जाग जाती है कि वह अन्यथा व्यवहार कर ही नहीं सकता। ध्यान युक्ति के द्वारा मनोबल को बढ़ाने का प्रयोग है । जब मनोबल बढ़ता है तब अनायास ही अनेक बुराइयां छूट जाती हैं। जीवन में बुराइयां तब बढ़ती हैं, जब आदमी का मनोबल कमजोर होता है। जब द्वार कमजोर है, टूटा-फूटा है तो उसमें से कुछ भी आ सकता है । जब मन टूटा हुआ होता है तो उसमें कुछ भी बुराई प्रवेश पा सकती है।
हम मनोबल को इतना मजबूत करें कि हम चाहे तो किसी को अन्दर आने दें और न चाहें तो किसी को प्रवेश करने की अनुमति न दें। इस स्थिति का निर्माण करना जीवन की सफलना का निर्माण करना है।
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