Book Title: Avchetan Man Se Sampark
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 188
________________ १७८ अवचेतन मन से संपर्क घटित किया जा सकता है ? एक धारणा यह है कि इनमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता । किन्तु यह धारणा सही नहीं है। यदि परिवर्तन घटित न हो तो शिक्षा का कोई अर्थ ही नहीं होता, साधना का कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। आदमी के दृष्टिकोण में परिष्कार हो, भावना और आचरण में परिष्कार हो, यही साधना और शिक्षा का उद्देश्य है। यदि ऐसा न हो तो ये व्यर्थ हैं। यदि साधना करने वाला और साधना न करने वाला-दोनों का समान आचरण हो तो फिर साधना का अर्थ हो क्या रह जाता है ? शिक्षा प्राप्त करने वाला भी वैसा ही और शिक्षा प्राप्त न करने वाला भी वैसा ही, तो फिर शिक्षा का प्रयोजन ही क्या रहा ? दोनों में अन्तर होना चाहिए । साधना और शिक्षा के द्वारा जीवन बदलता है, परिष्कृत होता है । जीवन-विज्ञान इस परिष्कार-सूत्र की खोज है। जीवन-विज्ञान का दूसरा अर्थ है-उन नियमों की खोज करना, जिनके द्वारा भावनात्मक विकास और बौद्धिक विकास में संतुलन स्थापित किया जा सके । आज दोनों में संतुलन नहीं है। शिक्षा जगत् की भी यही बड़ी समस्या है और धार्मिक जगत् की भी यही बड़ी समस्या है। आज की शिक्षा में बौद्धिक विकास का अनल्प अवकाश है। प्राचीन काल में भारत में जिस विद्या की शाखाओं का अध्ययन कराया जाता था, वे थोड़ी थीं। आज उनका बहुत विस्तार हुआ है। किन्तु इन सारी शाखाओं को, प्राचीन भाषा में, अपरा विद्या कहा जा सकता है और आज की भाषा में बौद्धिक विकास को घटित करने वाली शाखाएं कहा जा सकता है। आज आदमी बौद्धिक विकास के शिखर को छू रहा है। अपने-अपने क्षेत्र के निपुण व्यक्ति तैयार होकर निकल रहे हैं। किन्तु खेद है कि जितना बौद्धिक विकास होता जा रहा है, उतना ही भावनात्मक विकास कमजोर होता जा रहा है। प्राचीन भाषा में जिसे 'परा विद्या' कहा गया है, आज उसे हम भावनात्मक विकास या 'इमोशन' पर कंट्रोल करने की पद्धति कह सकते हैं । पराविद्या की बात आज शून्य होती जा रही है। इसीलिए शिक्षा जगत् में जो समस्याएं हैं, जो प्रश्न हैं, वे अनुत्तरित ही रह रहे हैं । तर्क और बुद्धि के द्वारा अनेक ग्रन्थों का निर्माण किया जा सकता है, जय-पराजय की बात सफल हो सकती है, पर अनुशासन आदि तत्त्वों की संपूर्ति नहीं हो सकती। तर्क समस्या को गहरा बना डालता है, निर्णय तक नहीं पहुंचाता। तर्क के आधार पर अनेक तथ्य सिद्ध किए जा सकते हैं, किन्तु उससे सही समाधान नहीं मिल सकता। बौद्धिक विकास की जो फलश्रुति मिलनी चाहिए, वह मिल रही है। आज का युग भौतिक उपलब्धियों से भरता जा रहा है । आज आर्थिक विकास हुआ है, संपन्नता बढ़ी है। किन्तु संघर्ष, कलह, अपराध और भ्रष्टाचार--- इन सब पर नियंत्रण करना, इन समस्याओं से निपटना बुद्धि या तक का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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